संसारी
दोष कितने कम हुए, हमे इस पर हर समय दृष्टि रखनी है । हमारे स्वभाव मेँ
अहमता, ममता कितनी कम हुई ,इस और ध्यान देना है । स्वाभिमान कितना कम
हुआ,अपने अपमान का अनुभव होना कितना कम हुआ,आत्म-प्रशंसा कितनी अचछी लगती
है । संसारी विषयों के अभाव मेँ कितना दुख होता है,उनके मिलने मेँ कितना
सुख मिलता है, यह सब अपनी आध्यात्मिक उन्नति को नापने का सबसे बढ़िया पैमाना
है।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
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