श्री
महाराजजी के मुखारविंद से: तुम लोगो को मै कितना उठाता हूं पर तुम लोग
नामापराध करके सब बराबर कर देते हो। मै तुम्हारे अपराधों को देखता हूं फिर
भी तुम लोगो से कहने में डर लगता है। सोचता हू, अभी इतने चल रहे हो ,अगर कह
दूँगा तो सत्संग भी छोड़ दोगे। मै माफ करना जानता हूँ,सोचता हू , कभी तो
अक्ल आएगी तो ठीक हो जाओगे।
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