जिमी हो शीत निवृत्त तिन , जिन ढिग अगिनि सिधार |
तिमि हो कृपा तिनहिं जिन , मन जाये हरि द्वार ||३०||
भावार्थ – जिस प्रकार आग के पास जाने से ठंड चली जाती है , उसी प्रकार
जिसका मन श्रीकृष्ण की शरण में चला जाता है , उस पर श्रीकृष्ण की कृपा हो
जाती है |
(भक्ति शतक )
जगदगुरु श्री कृपालुजी महाराज द्वारा रचित |
तिमि हो कृपा तिनहिं जिन , मन जाये हरि द्वार ||३०||
भावार्थ – जिस प्रकार आग के पास जाने से ठंड चली जाती है , उसी प्रकार जिसका मन श्रीकृष्ण की शरण में चला जाता है , उस पर श्रीकृष्ण की कृपा हो जाती है |
(भक्ति शतक )
जगदगुरु श्री कृपालुजी महाराज द्वारा रचित |
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