मसूरी लीला.........साधक-श्री महाराजजी संवाद।
एक बार एक सत्संगी ने श्री महाराजजी से पूछा कि हम संसार के लोगों को बाकी
सभी प्रश्नों के उत्तर तो दे देते हैं किन्तु एक प्रश्न का उत्तर नहीं दे
पाते। जब लोग हमसे बहस करते हैं कि रामजी, कृष्णजी,और गौरांग महाप्रभु जी
के गुरु थे,तो फिर तुम्हारे गुरु (श्री महाराजजी) के कोई गुरु क्यों नहीं
है?
श्री महाराजजी: अरे! तो तुम कह दो न की उनके भी गुरु हैं।
सत्संगी: महाराजजी,लेकिन आपके गुरु तो कोई भी नहीं है।
महाराजजी: हैं.....हैं .....पर बताएँगे नहीं।
सत्संगी: महाराजजी,प्लीज बताइये न?
महाराजजी: जब प्रचारक लोग प्रवचन करते हैं और सत्संगी फिर उनसे जुडते हैं
और बाद में ये प्रचारक लोग बताते हैं कि हमारे गुरु 'जगद्गुरु श्री
कृपालुजी महाराज' हैं। तो सब उन लोगों को छोड़ के मेरे पास आ जाते हैं।
इसलिए अगर मैं भी अपने गुरु का नाम बता दूँगा तो तुम लोग भी मुझे छोड़ के
उनके पास चले जाओगे, और मैं अकेले बैठा रह जाऊँगा मसूरी में।
थोड़ी
देर बाद सिद्धान्त समझाया कि देखो दो प्रकार के महापुरुष होते हैं एक साधन
सिद्ध,और एक नित्य सिद्ध। तो साधन सिद्ध को तो गुरु बनाना ही पड़ता है
लेकिन नित्य सिद्ध महापुरुष को कोई आवश्यकता नहीं है,फिर भी चाहे तो बना
सकते हैं।
इसके बाद फ़िर मज़ाक करते हुए बोले: हमारे भी गुरु हैं पर बताएँगे नहीं।
जय हो ऐसे विनोदी स्वभाव वाले श्री कृपालुजी महाप्रभु की।
*************राधे-राधे******** ******
मसूरी लीला.........साधक-श्री महाराजजी संवाद।
एक बार एक सत्संगी ने श्री महाराजजी से पूछा कि हम संसार के लोगों को बाकी सभी प्रश्नों के उत्तर तो दे देते हैं किन्तु एक प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाते। जब लोग हमसे बहस करते हैं कि रामजी, कृष्णजी,और गौरांग महाप्रभु जी के गुरु थे,तो फिर तुम्हारे गुरु (श्री महाराजजी) के कोई गुरु क्यों नहीं है?
श्री महाराजजी: अरे! तो तुम कह दो न की उनके भी गुरु हैं।
सत्संगी: महाराजजी,लेकिन आपके गुरु तो कोई भी नहीं है।
महाराजजी: हैं.....हैं .....पर बताएँगे नहीं।
सत्संगी: महाराजजी,प्लीज बताइये न?
महाराजजी: जब प्रचारक लोग प्रवचन करते हैं और सत्संगी फिर उनसे जुडते हैं और बाद में ये प्रचारक लोग बताते हैं कि हमारे गुरु 'जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज' हैं। तो सब उन लोगों को छोड़ के मेरे पास आ जाते हैं। इसलिए अगर मैं भी अपने गुरु का नाम बता दूँगा तो तुम लोग भी मुझे छोड़ के उनके पास चले जाओगे, और मैं अकेले बैठा रह जाऊँगा मसूरी में।
थोड़ी देर बाद सिद्धान्त समझाया कि देखो दो प्रकार के महापुरुष होते हैं एक साधन सिद्ध,और एक नित्य सिद्ध। तो साधन सिद्ध को तो गुरु बनाना ही पड़ता है लेकिन नित्य सिद्ध महापुरुष को कोई आवश्यकता नहीं है,फिर भी चाहे तो बना सकते हैं।
इसके बाद फ़िर मज़ाक करते हुए बोले: हमारे भी गुरु हैं पर बताएँगे नहीं।
जय हो ऐसे विनोदी स्वभाव वाले श्री कृपालुजी महाप्रभु की।
*************राधे-राधे******** ******
एक बार एक सत्संगी ने श्री महाराजजी से पूछा कि हम संसार के लोगों को बाकी सभी प्रश्नों के उत्तर तो दे देते हैं किन्तु एक प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाते। जब लोग हमसे बहस करते हैं कि रामजी, कृष्णजी,और गौरांग महाप्रभु जी के गुरु थे,तो फिर तुम्हारे गुरु (श्री महाराजजी) के कोई गुरु क्यों नहीं है?
श्री महाराजजी: अरे! तो तुम कह दो न की उनके भी गुरु हैं।
सत्संगी: महाराजजी,लेकिन आपके गुरु तो कोई भी नहीं है।
महाराजजी: हैं.....हैं .....पर बताएँगे नहीं।
सत्संगी: महाराजजी,प्लीज बताइये न?
महाराजजी: जब प्रचारक लोग प्रवचन करते हैं और सत्संगी फिर उनसे जुडते हैं और बाद में ये प्रचारक लोग बताते हैं कि हमारे गुरु 'जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज' हैं। तो सब उन लोगों को छोड़ के मेरे पास आ जाते हैं। इसलिए अगर मैं भी अपने गुरु का नाम बता दूँगा तो तुम लोग भी मुझे छोड़ के उनके पास चले जाओगे, और मैं अकेले बैठा रह जाऊँगा मसूरी में।
थोड़ी देर बाद सिद्धान्त समझाया कि देखो दो प्रकार के महापुरुष होते हैं एक साधन सिद्ध,और एक नित्य सिद्ध। तो साधन सिद्ध को तो गुरु बनाना ही पड़ता है लेकिन नित्य सिद्ध महापुरुष को कोई आवश्यकता नहीं है,फिर भी चाहे तो बना सकते हैं।
इसके बाद फ़िर मज़ाक करते हुए बोले: हमारे भी गुरु हैं पर बताएँगे नहीं।
जय हो ऐसे विनोदी स्वभाव वाले श्री कृपालुजी महाप्रभु की।
*************राधे-राधे********
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