श्री
महाराजजी ने जगदगुरु कि पदवी स्वीकार करते हुये कहा कि "आप सब विद्वानों
ने मिल कर मुझे जो जगदगुरुत्तम कि उपाधि दी है उसे मैं विनम्रतापूर्वक
स्वीकार करता हूँ । लेकिन और जगदगुरुओ की तरह न मैं कान फूकूंगा और न
शिष्य बनाऊंगा। इसके लिये आप मुझे क्षमा करेंगे। मैं विशुद्ध राधाकृष्ण
भक्ति का प्रचार करूँगा और विश्व कल्याण हेतु अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर
दूंगा "।
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