हमसे
तो कुछ होता नहीं। यह जो बैठे-बैठे निराशा का चिन्तन करते हो, यही सर्वनाश
करता है। निराशा गुरु की शक्ति का अपमान है। निराशा तब होती है जब शरणागत
यह सोचता है कि हमारा गुरु हमारी रक्षा नहीं कर रहा है न भविष्य में करेगा।
वह रक्षा करने में असमर्थ है। स्वयं से पूछो क्या ऐसा है?
........श्री महाराजजी।
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