अगर
कोई महापुरुष की कृपा को फील करना सीख जाये, तो बस उसे और साधना करने की
आवश्यकता नहीं हैं। जिसके पीछे-पीछे भगवान चलता है, उसने हमे दर्शन दिये,
बस यही सोच-सोचकर, बलिहार जाकर, हमें हर्ष में पागल हो जाना चाहिये। एक
ईश्वरीय अक्षर का भी ज्ञान गुरु करा दे और उसके बदले मेँ सम्पूर्ण पृथ्वी
भी अगर कोई दे दे, तो भी गुरु के ऋण से उऋण नहीं हों सकता।
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