जिससे
प्यार किया जाये उसको प्रिय कहते हैं , जो प्यार करे उसको प्रेमी कहते हैं
और जो प्रिय और प्रेमी को जो मिलाने वाला हो उसको प्रेम कहते हैं। ये तीन
चीजें होती हैं , प्रेमी , प्रेम और प्रेमास्पद। प्रियतम शब्द का एक विशेष
अर्थ में है। प्रियतम कौन हो सकता है ? जिसके पास प्रेमधन हो। प्रेम तो
भगवान् की एक विशेष शक्ति का नाम है जिसके वश में भगवान् रहते हैं। इतनी
बड़ी शक्ति है।
भगवान् की सबसे प्राइवेट शक्ति का नाम है प्रेम। हम
संसार के अज्ञानी लोग प्रेम शब्द को संसार में भी प्रयोग करते हैं। ' हम
बाप से प्रेम कर रहे हैं .' ' माँ से प्रेम कर रहे हैं। ' , ' बीबी से
प्रेम कर रहे हैं। , यहाँ कहाँ है प्रेम जो करोगे तुम। यहाँ तो सब भिखारी
हैं , किसी के पास प्रेम है ही नहीं।
प्रेम भगवान् के पास है या जो
भगवान् को प्राप्त कर लेते हैं उन सन्तों के पास है। बाकी जीव तो सब भिखारी
हैं क्योंकि मायाधीन हैं इसलिये वो प्रिय नहीं बन सकते। प्रेमास्पद नहीं
बन सकते , प्रेमास्पद शब्द का अर्थ है प्रेम का जो खजांची हो , जिसके पास
प्रेम हो। जिसके पास धन हो वो धनी कहलाता है , जिसके पास गुण हो वो गुणी
कहलाता है। उसी प्रकार जिसके पास प्रेमधन हो , दिव्य प्रेम , वो प्रिय
कहलाता है। उससे प्यार करना है हमको।
!! जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज !!
भगवान् की सबसे प्राइवेट शक्ति का नाम है प्रेम। हम संसार के अज्ञानी लोग प्रेम शब्द को संसार में भी प्रयोग करते हैं। ' हम बाप से प्रेम कर रहे हैं .' ' माँ से प्रेम कर रहे हैं। ' , ' बीबी से प्रेम कर रहे हैं। , यहाँ कहाँ है प्रेम जो करोगे तुम। यहाँ तो सब भिखारी हैं , किसी के पास प्रेम है ही नहीं।
प्रेम भगवान् के पास है या जो भगवान् को प्राप्त कर लेते हैं उन सन्तों के पास है। बाकी जीव तो सब भिखारी हैं क्योंकि मायाधीन हैं इसलिये वो प्रिय नहीं बन सकते। प्रेमास्पद नहीं बन सकते , प्रेमास्पद शब्द का अर्थ है प्रेम का जो खजांची हो , जिसके पास प्रेम हो। जिसके पास धन हो वो धनी कहलाता है , जिसके पास गुण हो वो गुणी कहलाता है। उसी प्रकार जिसके पास प्रेमधन हो , दिव्य प्रेम , वो प्रिय कहलाता है। उससे प्यार करना है हमको।
!! जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज !!
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