भक्तों
की बाहरी क्रियाओं पर कभी ध्यान नहीं देना चाहिये ! बाहर का व्यवहार ,
चेष्टा , क्रिया देखकर भ्रम हो सकता ! स्वयं को छिपाने के लिये अथवा साधक
की मन , बुद्धि की शरणागति की परीक्षा लेने के लिये महापुरुष विपरीत क्रिया
एवं चेष्टा भी करते हैं ! अतः महापुरुष की आन्तरिक स्तिथि पर ही ध्यान
देना चाहिये !
~~~~जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज~~~~
~~~~जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज~~~~
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