भगवान्
और महापुरुष ये दोनों अकारण करुण कहलाते हैं। अकारण करुण माने बिना मूल्य
लिये कृपा करना , दया करना। सकारण करुण तो सारा संसार है। हम १००० रुपया
देते हैं किसी को वह १००० रूपये का सामान देता है हमको। हमने टेलीफोन कर
दिया कि हमको इतने मूल्य का कपड़ा चाहिये ,साड़ी चाहिये वह लाकर पहुँचा
देता है , हमारे घर , यह सकारण करुण हुआ , लेकिन अकारण करुण का मतलब यह
होता है जिसमें कोई मूल्य न चुकाया जाय। यह ऐसी कृपा है कि कोई मायाबद्ध
जीव नहीं कर सकता क्योंकि उसको परमानन्द की प्राप्ति नहीं हुई है इसलिये वह
आनंद प्राप्ति के अतिरिक्त कुछ सोच ही नहीं सकता , करना तो बहुत दूर की
बात है।
!! जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज !!
!! जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज !!
No comments:
Post a Comment