हम
जितने क्षण मन को भगवान् में रखते हैं बस उतने क्षण ही हमारे सही हैं। शेष
सब समय पाप ही तो करेंगे। इस प्रकार २४ घण्टे में कितनी देर हमारा मन
भगवान् में रहता है, सोचो। बार - बार सोचना है कि मेरे पूर्व जन्मों के
अनंत पाप संचित कर्म के रूप में मेरे साथ हैं। पुनः इस जन्म के भी अनंत पाप
साथ हैं फिर भी हम भगवान् के आगे आँसू बहाकर क्षमा नहीं माँगते। धिक्कार
है मेरी बुद्धि को। बार - बार प्रतिज्ञा करना है कि अब पुनः किसी के सदोष
कहने पर बुरा नहीं मानेंगे। अभ्यास से ही सफलता मिलेगी। प्रतिदिन सोते समय
सोचो - आज हमने कितनी बार ऐसे अपराध किये। दुसरे दिन सावधान होकर अपराध से
बचो। ऐसे ही अभ्यास करते - करते बुरा मानना बन्द हो जाएगा।
*******जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज*******
*******जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज*******
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