हरि गुरु कृपाभिलाषी भक्तवृन्द !
जय श्री राधे ।
जय श्री राधे ।
संसार में दो प्रकार के लोग होते हैं। एक कहलाते हैं कृतज्ञ और दूसरे होते हैं कृतघ्नी। कृतज्ञ अर्थात् किसी के द्वारा किये गए उपकार का एहसान मानने वाला ,आभार मानने वाला, इस प्रकार के लोग उत्तम होते हैं। और कृतघ्नी वो हैं जो किसी के उपकार का कोई एहसान नहीं मानते अर्थात् एहसान फ़रामोश। इस प्रकार के लोग निकृष्ट माने जाते हैं।
इनमें से हमारी स्थिति एक कृतघ्नी जैसी है। हरि गुरु की अनंत कृपायें होते हुए भी हम उनकी कृपा का आभार नहीं मानते , उनकी कृपाओं का चिंतन नहीं करते अपितु नित नवीन कामनायें करके सदा उन्हें दोष ही दिया करते हैं। स्वयं में कमी न मानकर उनकी कृपा में कमी मानते हैं।
इसी वास्तविकता को 'राधा गोविंद गीत' में स्पष्ट करते हुए श्री महाराज जी कहते हैं -
इसी वास्तविकता को 'राधा गोविंद गीत' में स्पष्ट करते हुए श्री महाराज जी कहते हैं -
तुझ सा कृपालु नहिं गोविंद राधे ।
मुझ सा कृतघ्नी कोई हो तो बता दे ।।
मुझ सा कृतघ्नी कोई हो तो बता दे ।।
तेरे उपकारों का गोविंद राधे ।
आभार माना नहिं मानना सिखा दे।।
आभार माना नहिं मानना सिखा दे।।
हे नाथ! जिस प्रकार तुम जैसा कोई #कृपालु नहीं हो सकता उसी प्रकार मुझसे बड़ा कोई कृतघ्नी नहीं हो सकता। मैंने कभी तुम्हारी कृपाओं का आभार नहीं माना।
अब ऐसी कृपा कर दो उन अनंत अकारण कृपाओं का ही निरंतर चिंतन करके दिन रात अश्रु बहाता रहूँ । इसी कृपायाचना के साथ-
आपकी दीदी:
#सुश्री_श्रीधरी_दीदी_प्रचारिका_जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
अब ऐसी कृपा कर दो उन अनंत अकारण कृपाओं का ही निरंतर चिंतन करके दिन रात अश्रु बहाता रहूँ । इसी कृपायाचना के साथ-
आपकी दीदी:
#सुश्री_श्रीधरी_दीदी_प्रचारिका_जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज।
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