Wednesday, April 22, 2020

ईश्वर चिन्तन होता नहीं है, करना पड़ता है। जो कुछ होता है वह पहले का किया हुआ चिन्तन ही हो रहा है। जगत् का चिन्तन इसलिये भी होता है क्योंकि बुद्धि में बैठा हुआ है कि जगत् में सुख है। अब अगर भगवत् चिन्तन करना चाहते हो तो पहले बुद्धि में बैठाना पड़ेगा कि जगत् में सुख नहीं है,भगवान् में सुख है,तब भगवान् के चिन्तन की भूख लगेगी।
साथ में यह भी निश्चय हो जाय कि मृत्यु कभी भी हो सकती है। ऐसा निश्चय होने से चिन्तन का अभ्यास तेज हो जायेगा।
तुम व्यर्थ का चिन्तन करके समय नष्ट करते हो।संसारी काम कोई भी हो। मान लो, लड़का-लड़की की शादी करना है। जब प्रसंग आये, तब सोच कर तय कर डालो। शेष समय में सोचना बंद। जब तय हो गयी, कर डालो। उसको निरन्तर सोचते रहना ही खतरनाक है। निरन्तर सोचना तो ईश्वरीय होना चाहिये। समय आने पर संसार का काम तो प्रारब्ध जबरदस्ती करा लेगा।तुम नहीं करना चाहोगे,तब भी।
#जगद्गुरु_श्री_कृपालु_जी_महाराज

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