नंदनंदन पादारविन्द मकरंद मिलिंद भक्तवृन्द !
सादर राधे राधे ।
सादर राधे राधे ।
हमारे जीवन सर्वस्व नंदनंदन श्यामसुंदर हमारे सनातन साहूकार हैं और हम सदा से उनके ऋणियाँ हैं । उनके उपकार, उनकी कृपायें अनंत हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं हो सकता। भारतवर्ष जैसे आध्यात्मिक देश में जन्म, देवदुर्लभ मानव देह का प्राप्त होना, सद्गुरु मिलन सब उन्हीं की अहैतुकी कृपा का ही परिणाम है।
हमारे कल्याण के लिए ही वे वेदों को प्रकट करते हैं ,अनेकानेक संतों को इस धराधाम पर भेजते हैं, स्वयं भी बारम्बार अवतार लेकर आते हैं । वे ही हमारी समस्त इन्द्रियों में तत्तत् कर्म करने की शक्ति प्रदान करते हैं, हमारे अनंतानंत जन्मों के प्रत्येक क्षण के प्रत्येक कर्म को नोट करते हैं , उनका हिसाब रखते हैं और तदनुसार फल प्रदान करते हैं । हमारे बिना कुछ कहे ही वे हम पर कृपा की वृष्टि करते रहते हैं जिससे हम कभी उऋण नहीं हो सकते। उनके जैसा उदार उनके जैसा कृपालु भला और कौन हो सकता है --
हमारे कल्याण के लिए ही वे वेदों को प्रकट करते हैं ,अनेकानेक संतों को इस धराधाम पर भेजते हैं, स्वयं भी बारम्बार अवतार लेकर आते हैं । वे ही हमारी समस्त इन्द्रियों में तत्तत् कर्म करने की शक्ति प्रदान करते हैं, हमारे अनंतानंत जन्मों के प्रत्येक क्षण के प्रत्येक कर्म को नोट करते हैं , उनका हिसाब रखते हैं और तदनुसार फल प्रदान करते हैं । हमारे बिना कुछ कहे ही वे हम पर कृपा की वृष्टि करते रहते हैं जिससे हम कभी उऋण नहीं हो सकते। उनके जैसा उदार उनके जैसा कृपालु भला और कौन हो सकता है --
तुझसा उदार नाहिं गोविंद राधे ।
जो बिनु सेवा अपने आप को लुटा दे ।। (राधा गोविंद गीत )
जो बिनु सेवा अपने आप को लुटा दे ।। (राधा गोविंद गीत )
हमारे प्रियतम श्री कृष्ण अकारण करुणा के सिंधु हैं। पूतना का उद्धार करके ,कुब्जा को अपनाकर, विदुरानी के केलों के छिलके स्वीकार करके , सुदामा का सत्कार करके सर्वत्र उन्होंने अपनी अकारण कृपालुता का ही परिचय दिया ।
उन्हीं के कारण जीव का अस्तित्व है, वे ही हमारे जीवनधन हैं , प्राणों के आधार हैं । इसलिये एकमात्र उन्हीं से प्रेम करना हमारा परम कर्त्तव्य है।
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