गुरु रुचि महँ रुचि राखो गुरुधामा।
चाहो जनि भुक्ति मुक्ति वैकुण्ठ बामा।।
चाहो जनि भुक्ति मुक्ति वैकुण्ठ बामा।।
भावार्थः- गुरुधाम में वास करते समय प्रतिक्षण गुरु की रुचि में रुचि रखने का अभ्यास करना चाहिये। यहाँ तक कि ब्रह्मलोक पर्यन्त के ऐश्वर्य भोग, मुक्ति की कामना एवं बैकुण्ठ लोक के सुख की भी इच्छा साधक के मन में भूलकर भी नहीं आनी चाहिये।
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