भगवच्चरण चंचरीक साधकवृन्द !
सप्रेम राधे राधे !
साधक को किस प्रकार अपनी साधना के प्रति सावधान रहते हुए सदा अडिग रहना चाहिए उसी को स्पष्ट करते हुए 'राधा गोविंद गीत' में हमारे परम पूज्य गुरुवर जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज कहते हैं
- भयंकर आंधी में गोविंद राधे ।
पर्वत जैसे अचल बता दे ।।
पर्वत जैसे अचल बता दे ।।
ऐसे ही साधक गोविंद राधे ।
साधना में रहे अटल बता दे ।।
साधना में रहे अटल बता दे ।।
जैसे भयंकर आंधी आने पर भी पर्वत पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता वह अचल रहता है इसी प्रकार घोर से घोर विकट परिस्थितियाँ आने पर भी साधक को घबराना नहीं चाहिए , निराश होकर साधना से कभी विमुख नहीं होना चाहिए अपितु हरि गुरु पर दृढ़ विश्वास रखकर अपनी साधना के प्रति सदैव अटल रहना चाहिए । किसी भी प्रकार की संसार की बाधा को अपनी साधना में कभी बाधा नहीं बनने देना चाहिए । ऐसा सजग और सावधान साधक ही निरंतर तीव्र गति से लक्ष्य की ओर अग्रसर होता जाता है ।
भगवत्कृपा से हम सभी अपनी साधना के प्रति इसी प्रकार अडिग रहकर उन्नति कर सकें इसी मंगलकामना के साथ-
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