#प्रश्न : महाराज जी! जब मृत्यु निश्चित है तो बीमार होने पर दवाई करें या न करें, उसे तो समय से जाना ही है?
#उत्तर : दो प्रकार का रोग होता है - एक को कहते हैं #कर्मज, एक को कहते हैं #दोषज, हमारे #आयुर्वेद में। आयुर्वेद का मैं आचार्य हूँ। तो आयुर्वेद में दो प्रकार की बीमारी बताई गई है। जो आपके आहार-विहार की गड़बड़ी से हुआ है, यानी आपकी गड़बड़ी से हुआ है, खानपान जो कुछ अण्ड-बण्ड आपने किया उसके कारण हो गया है, उसको #दोषज कहते हैं। अब जो प्रारब्ध का कर्मफल भोग है, उसके द्वारा जो रोग होता है वो #कर्मज कहलाता है। तो कर्मज रोग का तो इलाज करो, न करो, बराबर है। जब प्रारब्ध भोग समाप्त हो जाएगा तो अपनेआप ठीक हो जाएगा। फिर तो अण्ड-बण्ड दवा भी करो तो भी वो रोग चला जायेगा। नाम करते हैं लोग, अरे हमने ऐसा कर लिया, हम तो ठीक हो गए। वो कर्मज व्याधि थी इसलिए ठीक हो गया अपनेआप। वो बता रहा है ऊटपटाँग इलाज। उसने झाड़-फूँक कर दिया, उसने ये कर दिया।
दोषज बीमारी जो होगी, जो हमारी गड़बड़ी से हुई है, उसमें तो दवा काम करेगी, इलाज कराना होगा। अब चूँकि मालूम नहीं हो सकता कि ये कर्मज है कि दोषज है, इसलिए दवा सबको करनी पड़ती है।
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