श्री राधाकृष्ण कृपाकांक्षी साधकवृन्द !
जय श्री राधे ।
जय श्री राधे ।
जिस प्रकार बिना परहेज किये केवल औषधि के सेवन से किसी रोग का निदान नहीं हो सकता इसी प्रकार कुसंग से बचे बिना साधना का लाभ भी प्राप्त नहीं हो सकता।
यही कारण है कि साधना का प्रयत्न करने के पश्चात भी साधक की उन्नति तीव्र गति से नहीं हो पाती क्योंकि साधना कम और कुसंग अधिक होता जाता है। और एक क्षण का ही कुसंग साधक का पतन करने में समर्थ होता है इसीलिए अजामिल का उदाहरण देते हुए श्री महाराज जी 'राधा गोविंद गीत' में कहते हैं -
यही कारण है कि साधना का प्रयत्न करने के पश्चात भी साधक की उन्नति तीव्र गति से नहीं हो पाती क्योंकि साधना कम और कुसंग अधिक होता जाता है। और एक क्षण का ही कुसंग साधक का पतन करने में समर्थ होता है इसीलिए अजामिल का उदाहरण देते हुए श्री महाराज जी 'राधा गोविंद गीत' में कहते हैं -
क्षण भर का कुसंग गोविंद राधे ।
अजामिल को महापापी बना दे ।।
अजामिल को महापापी बना दे ।।
याते सभी को गोविंद राधे ।
बचना सतत है कुसंग ते बता दे।।
बचना सतत है कुसंग ते बता दे।।
साधना से भी अधिक ध्यान कुसंग से बचने पर देना चाहिए । कुसंग चाहे किसी भी स्थान पर, किसी भी काल में, किसी भी रूप में , किसी के भी द्वारा मिले उसका तत्क्षण वहीं पर त्याग कर देना चाहिए क्योंकि जिस अंजन से आँख ही फूट जाए ऐसे अंजन से भला क्या लाभ ? ऐसे ही जिस कुसंग से एक क्षण में ही हमारी सारी कमाई, सारी साधना चौपट हो जाये उस कुसंग को ग्रहण करना समझदारी नहीं पराकाष्ठा की मूर्खता ही है ।
अतः अपना कल्याण चाहने वाले साधक को हरि - गुरु के प्रति नामापराध एवं परदोषदर्शन इत्यादि कुसंग से बचते हुए सावधानीपूर्वक सदा अपनी साधना पर ही ध्यान केंद्रित रखना चाहिए।
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