'हरि
, गुरु और भक्ति' इन तीनों में अनन्य भाव रखो । यानी इनके बाहर मत जाओ बस ,
राधाकृष्ण हमारे इष्ट देव और अमुक गुरु हमारा गाइड गार्जियन एक बस , और
साधना - ये उपाय स्मरण , कीर्तन , श्रवण ये तीन बस इसके बाहर नहीं जाना है ।
कुछ न सुनना है , न समझना है न पढ़ना है । अगर कोई सुनावे , बस बस हमको
मालुम है सब । निरर्थक बात नहीं सुनना है । बहुत से लोगों का यही धंधा है ,
कि इसको इस मार्ग से हटाओ । तो अण्ड बण्ड तर्क कुतर्क , वितर्क अतितर्क ,
ऐसी गन्दी गन्दी कल्पनाएँ करके आपके दिमांग में वो
डाउट पैदा कर देंगे । तो सुनना नहीं है । बस अपने मतलब से मतलब । ये शरीर
नश्वर है । पता नहीं कब छिन जाय । फालतू बातों में इसको न समाप्त करो ,
जल्दी जल्दी कमा लो । जितना अधिक भगवान् का , गुरु का स्मरण हो सके , उतना
स्मरण करके अंतःकरण शुद्धि का १/४ कर लो । फिर अगले जन्म १/४ कर लेना । तो
चार जन्म में हो जायगा शुद्ध । लेकिन जितना कर सको करो । उसमें लापरवाही
नहीं करना है । और हरि गुरु को सदा अपने साथ मानो । अपने को अकेला कभी न
मानो । इस बात पर बहुत ध्यान दो, इसका अभ्यास करना होगा थोडा । जैसे दस
मिनट में आपने एक बार रियलाइज किया - हाँ श्यामसुन्दर बैठे हैं फिर अपना
काम किया - तीन , चार , सात , पाँच , बारह , अठारह , चौबीस , फिर ऐसे आँख
करके कि हाँ बैठे हैं । ये फीलिंग हो कि हम अकेले नहीं हैं हमारे साथ हमारा
बाप भी है और हमारे गुरु भी हैं । ये फीलिंग हो तो अपराध नहीं होगा । गलती
नहीं करेंगे , भगवान् का विस्मरण नहीं होगा । वह बार - बार पिंच करेंगे
आकर के ।
तो इस प्रकार सदा उनको अपने साथ मानो और उनके मिलन की परम व्याकुलता बढ़ाओ ।
---- जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
---- जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
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