वास्तविक गुरु कभी संसारी वस्तु नहीं दिया करता....!!!
आजकल बहुधा दम्भियों ने यही मार्ग अपना लिया है कि गृहस्थियों को संसार
चाहिये ओर वो संस्कारवश मिलता ही रहता है, इसी में हम भी सम्मिलित हो जाये
ओर अपनी स्वार्थ सिद्धि एवं ख्याति प्राप्त कर ले। सोचिये तो कि वह
महापुरुष किसलिये है, इसलिये कि उसने संसार को नश्वर समझ कर भगवान को
प्राप्त कर लिया है, दिव्यानंद प्राप्त कर चूका है।यदि वह हमे संसार देता
है तो वह महापुरुष है या राक्षस है ? उसने तो अभी तक यही नहीं समझा है कि
आनंद संसार में है या भगवान में। फिर वो
महापुरुष कैसे ? और महापुरुष क्या भगवान भी कर्मविधान के विपरीत किसी को
संसार नहीं देते। ऐसे ही हम बेहोश हैं, उस इश्वर को भूले हुये है जिसमें
परमानन्द है, फिर महापुरुष वेशधारी ने संसार देने का नाटक करके हमें और
गुमराह कर दिया।
जरा सोचिये,
जिस अभिमन्यु के मामा परात्पर पूर्णतम पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण एवं जिनके
पिता अर्जुन महापुरुष थे एवं जिसकी शादी कराने वाले वेदव्यास स्वयं भगवान
के अवतार थे, जब तीन-तीन महाशक्तियाँ मिलकर भी उस अभिमन्यु को नहीं बचा सकी
तब हम दिन रात अपराध करते हुये, इश्वर से विमुख रहते हुये, स्त्री,
पुत्रादि में आसक्त रहते हुये कैसे आशा रखते हैं कि कोई बाबा हमारे
प्रारब्ध को काट देगा ? हमारा यह दुर्भाग्य है कि हम लोग भारतीय शास्त्रों
को नहीं पढ़ते अतएव इस प्रकार की महान त्रुटियाँ करते रहते हैं। प्रति वर्ष
हमारे देश में ऐसा नाटक कहीं न कहीं विराट रूप में होता है और लाखों की
भीड़ जमा हो जाति है, केवल इसलिये कि यह बाबा असंभव को संभव कर देता है।
अगर ऐसा सामर्थ्य या अधिकार भगवान या किसी महापुरुष को होता तो अनादिकाल से
अब तक अनंतानन्त बार भगवान एवं संतो के अवतीर्ण होने पर यह विश्व न बना
रहता। जब वे संत लोग गाली एवं डंडा खाने को तैयार रहते हैं तब उन्हें यह
कहने में क्या लगता है कि हे!समस्त विश्व के जीवों, तुम्हारा अभी ही तुरंत
उद्धार हो जाये. बस, इतना कहने मात्र से काम बन जाये। भोले भाले लोगों को
ठगने वाले ये दम्भी हमारे देश में निर्भयतापूर्वक विचरते हैं और आप लोग भी
उनकी खोज में रहते हैं।
---- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
---- जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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