आपको परमानन्द प्राप्त करना है। परमानन्द एक मात्र ईश्वर में ही है , अतएव ईश्वर को प्राप्त करना है।
ईश्वर इन्द्रिय , मन , बुद्धि से अप्राप्य है किन्तु वह जिस पर कृपा कर देता है , वह उसे प्राप्त कर लेता है।
उसकी कृपा शरणागत पर ही होती है। शरणागति मन की करनी है। मन अनादिकाल से संसार में ही सुख मानता आया अतएव संसार का स्वरुप गंभीरतापूर्वक समझना है।
संसार का स्वरुप समझकर उस पर बार - बार बिचार करना है यानी मनन करना है।
तब संसार से वैराग्य होगा। अर्थात मन राग-द्वेष-रहित होगा। तब महापुरुष को पहिचानना है।
जब महापुरुष मिल जाय, तब यह प्रशन पैदा होता है कि ईश्वर शरणागति के हेतु कौन - सा मार्ग अपनाया जाय अर्थात ईश्वर प्राप्ति के उपायों को जानना है।
........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।
ईश्वर इन्द्रिय , मन , बुद्धि से अप्राप्य है किन्तु वह जिस पर कृपा कर देता है , वह उसे प्राप्त कर लेता है।
उसकी कृपा शरणागत पर ही होती है। शरणागति मन की करनी है। मन अनादिकाल से संसार में ही सुख मानता आया अतएव संसार का स्वरुप गंभीरतापूर्वक समझना है।
संसार का स्वरुप समझकर उस पर बार - बार बिचार करना है यानी मनन करना है।
तब संसार से वैराग्य होगा। अर्थात मन राग-द्वेष-रहित होगा। तब महापुरुष को पहिचानना है।
जब महापुरुष मिल जाय, तब यह प्रशन पैदा होता है कि ईश्वर शरणागति के हेतु कौन - सा मार्ग अपनाया जाय अर्थात ईश्वर प्राप्ति के उपायों को जानना है।
........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।
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