मेरे प्रिय साधक ,
तत्वज्ञान तो इतना ही है कि सेवक धर्म में केवल सेव्य की इच्छानुसार सेवा
करना है। किन्तु अभ्यास एवं वैराग्य से ही सेवा का सही रूप बनेगा। अभ्यास
यह है कि क्षण - क्षण सावधान रहो। वैराग्य यह कि शरीर के सुखों की इच्छा न
हो। स्टेशन मास्टर या कारखाने का कर्मचारी रात भर नहीं सोता। बीमार शिशु की
माँ रात भर नहीं सोती। यह महत्व मानने पर निर्भर करता है। लापरवाही ही
अनन्त जन्म नष्ट कर चुकी है। अतः तत्वज्ञानी को परवाह करनी चाहिए। यह
सौभाग्य सदा न मिलेगा। जब तक मिला है परवाह करके ले लें।
---तुम्हारा जगद्गुरु कृपालु।
---तुम्हारा जगद्गुरु कृपालु।
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