कृपालु गुरुवर हैं रखवार हमारों......!!!!!
श्री महाराजजी हम साधकों के लिए 'साक्षात राधारानी' का ही रूप हैं, सर्वजन कल्याणार्थ उनको जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु का रूप धारण करना पड़ा। हमारे कल्याण के लिए ये भारत में वर्षों तक अनेक स्थानों पर प्रवचन देते रहे। भक्तो के बीच प्राय: प्रवचन,पदगान,पद व्याख्या आदि कर हमें वेद-वेदान्त एवं निगमागम आगम सिद्धांतो से अवगत कराते रहें हैं। मैं(जीव), ये (माया),और वह(भगवान),संबंध,अभिधेय एवं प्रयोजन आदि का ज्ञान जिस प्रकार हमारे गुरुदेव बोधगम्य कराते हैं, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। उनकी कृपा और सत्संग से ही उनके बारे में जाना जा सकता है।
हमारे रखवार(श्री कृपालु महाप्रभु) हमें साधना कैसे करें,साधक सावधानी,दिव्यादेश! आदि देकर भी कृतार्थ करते रहते हैं।एक वस्तु में दूसरे वस्तु की भावना करने से भावना का फल नहीं मिलता,वस्तु नहीं बदल जाती परंतु कहीं भी किसी वस्तु में भगवद भावना का फल मिलता है। गुरुदेव के ये सिद्धान्त ये निर्देश हैं कि जहां-जहां मन भटके वहाँ वहाँ श्याम सुंदर को खड़ा कर दो। सदा सर्वत्र हरि-गुरु को साथ मानो,कितने सार्थक और उपयोगी हैं।
रसिक संत कि क्रिया,मुद्रा कोई समझ नहीं सकता उसको महाप्रभु गुरु रूप में चरितार्थ करते रहते हैं। वे हमे गोलोक की भी अग्रिम पंक्ति में बिठाना चाहते हैं।अत: साधक जैसे जैसे भक्ति मार्ग में अग्रसर होता है उसकी परीक्षाएँ कठिन होती जाती हैं,गुरुधाम सघन प्रशिक्षण केंद्र में परिवर्तित होने लगता है,गुरु व्यवहार समझ में नहीं आता,वातावरण और परिस्थिति प्रतिकूल एवं विपरीत होने लगती हैं। ऐसे में ही बस साधक को गुरु वचनों पर दृढ़ निष्ठा रख कर सर्वत्र हरि-गुरु को खड़ा कर अपने साथ-साथ समझ संयम रखकर हरि-गुरु के निर्देशानुसार व्यवहार करना चाहिए।कहना और लिखना बहुत आसान है पर ऐसी परीक्षाओं से गुजरना आसान नहीं है।साधक यदि विफल भी रहता है तो पुन: प्रयत्न करता है और प्रत्येक परीक्षा के बाद वह अनुभव करता है की वो और निखर गया है। इसलिए निराशा कभी नहीं लाना है। हमारे गुरुदेव परीक्षा तो लेंगे ही परंतु टूटने या बिखरने नहीं देते। हम भी आश्वस्त हैं क्योंकि स्वयं हरि अवतारी जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु(महाराजजी),हमारे रखवार सदा हमारा योगक्षेम वहन कर रहे हैं।
श्री महाराजजी हम साधकों के लिए 'साक्षात राधारानी' का ही रूप हैं, सर्वजन कल्याणार्थ उनको जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु का रूप धारण करना पड़ा। हमारे कल्याण के लिए ये भारत में वर्षों तक अनेक स्थानों पर प्रवचन देते रहे। भक्तो के बीच प्राय: प्रवचन,पदगान,पद व्याख्या आदि कर हमें वेद-वेदान्त एवं निगमागम आगम सिद्धांतो से अवगत कराते रहें हैं। मैं(जीव), ये (माया),और वह(भगवान),संबंध,अभिधेय एवं प्रयोजन आदि का ज्ञान जिस प्रकार हमारे गुरुदेव बोधगम्य कराते हैं, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता है। उनकी कृपा और सत्संग से ही उनके बारे में जाना जा सकता है।
हमारे रखवार(श्री कृपालु महाप्रभु) हमें साधना कैसे करें,साधक सावधानी,दिव्यादेश! आदि देकर भी कृतार्थ करते रहते हैं।एक वस्तु में दूसरे वस्तु की भावना करने से भावना का फल नहीं मिलता,वस्तु नहीं बदल जाती परंतु कहीं भी किसी वस्तु में भगवद भावना का फल मिलता है। गुरुदेव के ये सिद्धान्त ये निर्देश हैं कि जहां-जहां मन भटके वहाँ वहाँ श्याम सुंदर को खड़ा कर दो। सदा सर्वत्र हरि-गुरु को साथ मानो,कितने सार्थक और उपयोगी हैं।
रसिक संत कि क्रिया,मुद्रा कोई समझ नहीं सकता उसको महाप्रभु गुरु रूप में चरितार्थ करते रहते हैं। वे हमे गोलोक की भी अग्रिम पंक्ति में बिठाना चाहते हैं।अत: साधक जैसे जैसे भक्ति मार्ग में अग्रसर होता है उसकी परीक्षाएँ कठिन होती जाती हैं,गुरुधाम सघन प्रशिक्षण केंद्र में परिवर्तित होने लगता है,गुरु व्यवहार समझ में नहीं आता,वातावरण और परिस्थिति प्रतिकूल एवं विपरीत होने लगती हैं। ऐसे में ही बस साधक को गुरु वचनों पर दृढ़ निष्ठा रख कर सर्वत्र हरि-गुरु को खड़ा कर अपने साथ-साथ समझ संयम रखकर हरि-गुरु के निर्देशानुसार व्यवहार करना चाहिए।कहना और लिखना बहुत आसान है पर ऐसी परीक्षाओं से गुजरना आसान नहीं है।साधक यदि विफल भी रहता है तो पुन: प्रयत्न करता है और प्रत्येक परीक्षा के बाद वह अनुभव करता है की वो और निखर गया है। इसलिए निराशा कभी नहीं लाना है। हमारे गुरुदेव परीक्षा तो लेंगे ही परंतु टूटने या बिखरने नहीं देते। हम भी आश्वस्त हैं क्योंकि स्वयं हरि अवतारी जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु(महाराजजी),हमारे रखवार सदा हमारा योगक्षेम वहन कर रहे हैं।
जय श्री राधे।
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