सोचिए हम कितने सौभाग्यशाली हैं………………
श्री भगवान की महती अनुकम्पा से लाखो योनियों मे से कुछ जीवो को मनुष्य शरीर प्राप्त होता है। इस मनुष्य शरीर मे भी कई हजार लोगो मे कोई एक वेद सम्मत धर्म कर्म मे रुचि रखता है। ऐसे कई हजार लोगो मे कोई एक निश्चित और प्रमाणिक पथ का अनुसरण कर भगवत प्राप्ति की ओर उन्मुख होता है। ऐसे कई हजार जिज्ञासु जीवों मे किसी एक को वास्तविक श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की प्राप्ति होती है और ऐसे कई हजार गुरु कृपा प्राप्त साधकों में से कोई एक रसिक महापुरुष अर्थात गोपी प्रेम प्राप्त महापुरुष का सत्संग प्राप्त करता है। इससे ही ज्ञात होता है कि ब्रजरस के मुर्तिमान स्वरुप 'कृपालु महाप्रभु' का सत्संग कितना दुर्लभतम है। श्री महाराजजी अपनी उदारता, दानशीलता और कृपा के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। उनका ऐसा स्वभाव है कि वे अकारण ही जीवों पर अनवरत कृपा करते रहते हैं।
सोचिऐ ऐसे रसिक शिरोमणि गुरु के हमारे लिए सहज सुलभ हो जाने पर भी हम उनकी आज्ञापालन मे क्यों लापरवाही कर रहे हैं ????
श्री भगवान की महती अनुकम्पा से लाखो योनियों मे से कुछ जीवो को मनुष्य शरीर प्राप्त होता है। इस मनुष्य शरीर मे भी कई हजार लोगो मे कोई एक वेद सम्मत धर्म कर्म मे रुचि रखता है। ऐसे कई हजार लोगो मे कोई एक निश्चित और प्रमाणिक पथ का अनुसरण कर भगवत प्राप्ति की ओर उन्मुख होता है। ऐसे कई हजार जिज्ञासु जीवों मे किसी एक को वास्तविक श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की प्राप्ति होती है और ऐसे कई हजार गुरु कृपा प्राप्त साधकों में से कोई एक रसिक महापुरुष अर्थात गोपी प्रेम प्राप्त महापुरुष का सत्संग प्राप्त करता है। इससे ही ज्ञात होता है कि ब्रजरस के मुर्तिमान स्वरुप 'कृपालु महाप्रभु' का सत्संग कितना दुर्लभतम है। श्री महाराजजी अपनी उदारता, दानशीलता और कृपा के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। उनका ऐसा स्वभाव है कि वे अकारण ही जीवों पर अनवरत कृपा करते रहते हैं।
सोचिऐ ऐसे रसिक शिरोमणि गुरु के हमारे लिए सहज सुलभ हो जाने पर भी हम उनकी आज्ञापालन मे क्यों लापरवाही कर रहे हैं ????
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