भक्त्ति अर्थात् मन से भगवान् को सोचो, उनका चिंतन, उनका स्मरण करो, भगवान् को पाने के लिये और कुछ नहीं करना ।
भक्त का चिन्तन भी प्राकृत होता है, लेकिन वो भगवान् से सम्बद्ध है, तो भगवान् अपनी स्वरुप शक्त्ति के द्वारा उस चिन्तन को दिव्य बना देते हैं, इसलिये भक्त का मन वास्तविक भगवान् का चिन्तन करने लगता है । भगवान् शरणागत ज्ञानियों को अपना दिव्य बुद्धियोग, दिव्य ज्ञान देते हैं, जिससे वो मोक्ष प्राप्त करते हैं॥
-जगद्गुरु कृपालुजी महाप्रभु.
भक्त का चिन्तन भी प्राकृत होता है, लेकिन वो भगवान् से सम्बद्ध है, तो भगवान् अपनी स्वरुप शक्त्ति के द्वारा उस चिन्तन को दिव्य बना देते हैं, इसलिये भक्त का मन वास्तविक भगवान् का चिन्तन करने लगता है । भगवान् शरणागत ज्ञानियों को अपना दिव्य बुद्धियोग, दिव्य ज्ञान देते हैं, जिससे वो मोक्ष प्राप्त करते हैं॥
-जगद्गुरु कृपालुजी महाप्रभु.
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