चितवत चित कर्षत जिते, चित समाधि महं लाय।
औरन की का बात कह, शिव गोपी तनु पाय।।
भावार्थ: श्यामसुंदर की एक रसमयी दृष्टि से बड़े-बड़े परमहंस समाधि भुला देते हैं। और परमहंसों की तो चर्चा ही क्या है- सायं भगवान शंकर तक ने गोपी शरीर धारण किया।
जाको आत्माराम कहि,वेद ऋचान बखान।
सोई गोपिन सँग रास कर,गोपिहु वेद ऋचान।।
भावार्थ: ब्रह्म श्रीकृष्ण को वेदों की ऋचाएँ बार-बार आत्माराम,आत्मरति,आत्मक्रीड़ कह कर निरूपित करती हैं।वही ब्रह्म बृज में गोपियों के साथ महारास रूपी रमण करता है। और आश्चर्य यह है की वे वेद की ऋचाएँ रास में सम्मिलित हैं।
भक्ति शतक ग्रंथ से........जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु द्वारा रचित।
चितवत चित कर्षत जिते, चित समाधि महं लाय।
औरन की का बात कह, शिव गोपी तनु पाय।।
भावार्थ: श्यामसुंदर की एक रसमयी दृष्टि से बड़े-बड़े परमहंस समाधि भुला देते हैं। और परमहंसों की तो चर्चा ही क्या है- सायं भगवान शंकर तक ने गोपी शरीर धारण किया।
जाको आत्माराम कहि,वेद ऋचान बखान।
सोई गोपिन सँग रास कर,गोपिहु वेद ऋचान।।
भावार्थ: ब्रह्म श्रीकृष्ण को वेदों की ऋचाएँ बार-बार आत्माराम,आत्मरति,आत्मक्रीड़ कह कर निरूपित करती हैं।वही ब्रह्म बृज में गोपियों के साथ महारास रूपी रमण करता है। और आश्चर्य यह है की वे वेद की ऋचाएँ रास में सम्मिलित हैं।
भक्ति शतक ग्रंथ से........जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु द्वारा रचित।
औरन की का बात कह, शिव गोपी तनु पाय।।
भावार्थ: श्यामसुंदर की एक रसमयी दृष्टि से बड़े-बड़े परमहंस समाधि भुला देते हैं। और परमहंसों की तो चर्चा ही क्या है- सायं भगवान शंकर तक ने गोपी शरीर धारण किया।
जाको आत्माराम कहि,वेद ऋचान बखान।
सोई गोपिन सँग रास कर,गोपिहु वेद ऋचान।।
भावार्थ: ब्रह्म श्रीकृष्ण को वेदों की ऋचाएँ बार-बार आत्माराम,आत्मरति,आत्मक्रीड़ कह कर निरूपित करती हैं।वही ब्रह्म बृज में गोपियों के साथ महारास रूपी रमण करता है। और आश्चर्य यह है की वे वेद की ऋचाएँ रास में सम्मिलित हैं।
भक्ति शतक ग्रंथ से........जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु द्वारा रचित।
No comments:
Post a Comment