Tuesday, February 19, 2013

अपने श्यामसुन्दर से ऐसा और इतना प्रेम बढ़ाओ जैसा और जितना कि कोई घोर कामिनी अपने मायिक प्रियतम के प्रति बढ़ती है ! तुम्हारा प्रियतम तो मायातीत दिव्य है कितने भाग्य है तुम्हारे !
------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

 

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