"हम पापात्मा जीव संतो को सदा बिच्छू की तरह डंक मारते जाते हैं लेकिन संत फिर भी कृपा करते जाते हैं। जब संत यह संसार छोड़ कर चले जाते हैं, तब हम उनकी पूजा करते हैं लेकिन अपने जीवन काल में बेचारे सदैव अत्याचार और अन्याय के जाल में फंस जाते हैं। संत का तो स्वभाव ही है परोपकार। सर्वस्व लुट जाये, नाम, प्रतिष्ठा सब समाप्त हो जाये लेकिन जीव कल्याण का व्रत उनका स्वभाव ही है।"
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