Monday, February 11, 2013

संसार से राग (अनुकुल भाव युक्त) जितना पतन कारक है, उतना ही द्वेष (प्रतिकुल भाव युक्त) भी पतन कारक है । अतएव संसारी राग द्वेष रहित होने पर ही साधना संभव है । यही वास्तविक वैराग्य है । सब में श्रीकृष्ण का समान रुप से निवास है, अतः सब में समान भावना रखना है ।

सिद्ध (भगवत् प्राप्त महापुरुष) के चिन्तन से ही मन शुद्ध होता है । भावार्थ यह की हरि + गुरु से प्रेम हो एवं संसार से राग द्वेष रहित (उदासीन) भाव रहे । यही साधक का सच्चा स्वरुप है ॥

-जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज.
संसार से राग (अनुकुल भाव युक्त) जितना पतन कारक है, उतना ही द्वेष (प्रतिकुल भाव युक्त) भी पतन कारक है । अतएव संसारी राग द्वेष रहित होने पर ही साधना संभव है । यही वास्तविक वैराग्य है । सब में श्रीकृष्ण का समान रुप से निवास है, अतः सब में समान भावना रखना है । 

सिद्ध (भगवत् प्राप्त महापुरुष) के चिन्तन से ही मन शुद्ध होता है । भावार्थ यह की हरि + गुरु से प्रेम हो एवं संसार से राग द्वेष रहित (उदासीन) भाव रहे । यही साधक का सच्चा स्वरुप है ॥

-जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज
 

No comments:

Post a Comment