Monday, October 17, 2011

लोग अपने ही गुरु के सामने कहते हैं महाराजजी! आप तो अंतर्यामी है। अच्छा, मैं अंतर्यामी हूँ! और बोल जाते हैं झूठ। गुरु मन में कितना दुखी होता होगा ये सुन के कि देखो ये मुँह से बोलता है आप अंतर्यामी हैं और हमहीं से झूठ बोल रहा है, कपट की बात कर रहा है।
-----श्री महाराजजी।



रूपध्यान ही साधना है, उपासना है, भक्ति है।
-----श्री महाराजजी।

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