Friday, October 7, 2011


रटो रे मन ! छिन छिन श्यामा श्याम |
सद्घन चिद्घन आनंदघन जो, रूप एक द्वै नाम |
जासु नाम शिव शुक सनकादिक, गावत आठों याम |
जाकी लीला लखन ज्ञानिजन, बने विटप ब्रजधाम |
जासु धाम विधि ब्रज-रज याचत, ठड़े एक ही पाम |
...
जिन ‘कृपालु’ गुन सुनि शुक से मुनि, तजत समाधि ललाम ||

भावार्थ- अरे मन ! ‘श्यामा-श्याम’ इस युगल नाम को प्रत्येक क्षण रटता रह | यह श्यामा-श्याम सच्चिदानन्द ब्रह्म के ही दो अभिन्न स्वरूप हैं | अरे मन ! इनके नाम को शिव, शुक, सनकादि परमहंस भी निरन्तर गाते रहते हैं | इनकी लीला को देखने के लिये ज्ञानी लोग भी ब्रज में वृक्षों का शरीर धारण करते हैं | इनके धाम की धूलि को ब्रह्मा सरीखे एक पैर से खड़े होकर माँगते रहते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि इन्हीं युगल सरकार के गुणों को सुनकर शुकदेव सरीखे परमहंस भी अपनी निर्विकल्प समाधि छोड़ देते हैं एवं वेदव्यास से श्रीमद् भागवत का श्रवण करते हैं |

(प्रेम रस मदिरा सिद्धान्त-माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति.

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