Thursday, October 27, 2011





पकरि गयो चोरत माखनचोर |
सूने घर घुसि खात रहे दुरि, नवनि चोर-सिरमोर |
पाछे ते गोपी ने औचक, पकर् यो कर बरजोर |
ल्याईं बाँधि मातु यशुमति ढिग, दियो उरहनो घोर |
हरि कह ‘पद्मराग-मणि-कंकण, तपत पाणि रह मोर |
...
याही ते ‘कृपालु’ हौं मैया !, दिय मटुकिहिं कर बोर’ ||

भावार्थ- माखनचोर चोरी करते हुए पकड़े गये | चोरों के सरदार श्यामसुन्दर एक गोपी के सूने घर में घुस कर मक्खन खा रहे थे, पीछे से उस गोपी ने उनके दोनों हाथ जबर्दस्ती पकड़ लिये एवं बाँधकर मैया यशोदा के पास ले आयी तथा घोर उलाहना दिया | तब श्यामसुन्दर ने यह बात बनायी कि मैया मैं चोरी नहीं कर रहा था वरन् पद्मराग मणि के कंकण से जलते हुए अपने हाथों को ‘श्री कृपालु जी’ के शब्दों में मक्खन की मटुकी में डुबा कर ठंडा कर रहा था |

(प्रेम रस मदिरा श्री कृष्ण-बाल लीला- माधुरी)
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित- राधा गोविन्द समिति.

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