Saturday, October 15, 2011



हरि-गुरु को सदा अपने साथ महसूस करो। यानि कभी अपने आप को अकेला मत समझो। जब कभी मक्कारी का विचार पैदा हो, तुरंत यह सोचो कि वे देख रहे हैं।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।



सेठ जी को फिक्र थी एक-एक का दस-दस कीजिये।
मौत आ पहुँची कि हजरत जान वापस दीजिये।।

मानव देह की क्षणभंगुरता पर विचार करते हुए तुरंत वास्तविक महापुरुष द्वारा निर्दिष्ट साधना प्रारम्भ करो, संसारी कमाई पर नहीं, ईश्वरीय कमाई पर ध्यान दो। वो ही साथ जायेगी।



भगवान और जीव को बीच में जोड़ने वाली चीज एक मात्र 'सेवा' ही है, उसी को 'भक्ति' भी कहते हैं। अर्थात सेवा ही भक्ति है, भक्ति ही सेवा है।

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