Friday, October 7, 2011

किसी व्यक्ति को तत्वज्ञान हो जाना और भगवतरूचि बने रहना, प्रभु को पाने की छटपटाहट बनी रहना,यह हजारों जन्मों के प्रयत्न से भी नहीं हो पाता। यही छटपटाहट भगवदप्राप्ति की जड़ है। यह वह चिंगारी है जो भगवदप्रेम रूपी अग्नि को प्रज़्जव्लित करेगी। इसमे निरंतर व्याकुलतापूर्वक स्मरण का तृण पड़ता रहे तो चिंगारी से ज्वाला निकले।
------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।



वास्तविक महापुरुष से मिलन ही ईश्वर की अंतिम कृपा है। महापुरुष मिलन, ईश्वर मिलन का पक्का प्रमाण है।
--------श्री कृपालुजी महाप्रभु।



समस्त धर्मों का फल 'श्रीकृष्ण' भक्ति है। समस्त साधनाएँ एवं योग्यताएँ श्री कृष्ण भक्ति के बिना व्यर्थ है।
-------श्री महाराजजी.



अश्रद्धालु एवं अनाधिकारी से भगवतचर्चा करना कुसंग है।
------श्री महाराजजी.


संसार में न दुख है न सुख, वस्तुत: हमारी काल्पनिक मान्यता का परिणाम ही सुख एवं दुख है।
------श्री कृपालुजी महाप्रभु।



 अनन्यता माने क्या? " एक भरोसों एक बल, एक आस विश्वास"।







संसार में सभी चीजे सहीं हैं ,गलत कुछ भी नहीं हैं। आपको अपने लिये देखना है कि हमारे लिये अनुकूल क्या है।
------श्री महाराजजी.

No comments:

Post a Comment