हास
- परिहास में भी शास्त्रीय सिद्धान्तों का निरूपण करके प्रत्येक जाति ,
प्रत्येक सम्प्रदाय, बाल , युवा , वृद्ध सभी आयु तथा शिक्षित - अशिक्षित ,
मूर्ख - विद्वान् सभी को जिन्होंने प्रेम पाश में बांधकर विश्व बन्धुत्व का
क्रियात्मक रूप स्थापित किया है ,
ऐसे सहज सनेही सुधासिंधु ,श्री गुरुवर के चरणों में कोटि - कोटि प्रणाम !
ऐसे सहज सनेही सुधासिंधु ,श्री गुरुवर के चरणों में कोटि - कोटि प्रणाम !
No comments:
Post a Comment