विपरीत
चिन्तन हो, तुरन्त लाईन काट दो, - “नहीं मैं ही गलत हूँ, वो सही है, उनसे
गलत काम हो ही नहीं सकता |” जैसे खाना खाते समय यदि एक चीज भी गलत आई,
थोड़ी सी प्रतिकूल चीज आई, मुख से बाहर निकाल दिया | ऐसे ही आत्मा के
प्रतिकूल पदार्थ यानी प्रतिकूल चिन्तन प्रारम्भ होते ही इलाज करो, अन्यथा
द्रौपदी के चीर की भाँति बढ़ता ही जायेगा, फिर सँभल नहीं पायेगा | भगवान
कहते हैं, “समस्त शास्त्रों का समस्त ज्ञान समस्त जीव प्राप्त नहीं कर सकते
हैं |” यदि वह केवल इतना ही याद रखें कि विरक्त होकर वास्तविक गुरु के
शरणागत हों और प्रतिक्षण गुरु के अनुकूल ही चिन्तन व संकल्प करें तो उनका
काम बन जायेगा |
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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