श्री महाराजजी के श्री मुख से ----भगवान् कहते हैं -
अन्त समय में जो मुझको स्मरण करता है। मुझको ही स्मरण करते हुये शरीर छोड़ता है। दोनों शब्दों पर ध्यान दो। ' मां एव ' केवल मुझको स्मरण करे मरते समय , केवल मुझको। ' भी ' नहीं। तो -
वो मेरे लोक को आता है।
स्मरण करना होगा , मन से।
राम श्याम , ओम कोई भगवन्नाम लो साथ में मेरा स्मरण करो। तब मुझको प्राप्त करोगे। खाली नाम से नहीं। यानी तुम्हारी भावना होनी चाहिये इस नाम मैं भगवान् बैठे हैं।
अन्त समय में जो मुझको स्मरण करता है। मुझको ही स्मरण करते हुये शरीर छोड़ता है। दोनों शब्दों पर ध्यान दो। ' मां एव ' केवल मुझको स्मरण करे मरते समय , केवल मुझको। ' भी ' नहीं। तो -
वो मेरे लोक को आता है।
स्मरण करना होगा , मन से।
राम श्याम , ओम कोई भगवन्नाम लो साथ में मेरा स्मरण करो। तब मुझको प्राप्त करोगे। खाली नाम से नहीं। यानी तुम्हारी भावना होनी चाहिये इस नाम मैं भगवान् बैठे हैं।
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