हे
प्रभु ! मैं तो सदा से ही माया से भ्रमित होकर आपसे विमुख होकर संसार में
भटकता रहा। गुरु कृपा से मेरी मोह निद्रा टूटी। उनके इस उपकार के बदले में
मैं कंगाल भला कौन सी वस्तु उन्हें अर्पित कर सकता हूँ। क्योंकि गुरु के
द्वारा दिये गये ज्ञान के उस शब्द के बदले सम्पूर्ण विश्व की सम्पति भी
उन्हें सौंप दी जाय तो भी ज्ञान का मूल्य नहीं चुकाया जा सकता। ज्ञान दिव्य
है और सांसारिक पदार्थ मायिक हैं।
!! जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु !!
!! जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु !!
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