श्री
महाराजजी से प्रश्न:- महाराजजी- केवल धन की सेवा से भी लक्ष्य प्राप्ति हो
सकती है। यानि गुरु की धन की सेवा की जो आज्ञा है और वो पूरी जी जान से
आदमी करता रहे, तो उससे भी भगवदप्राप्ति हो सकती है केवल अगर वही आज्ञापालन
कर ली जाय तो?
श्री महाराजजी द्वारा उत्तर:- नहीं। मेन बात तो शरणागति की है बिना मन की
शरणागति के तन और धन से काम नहीं चलेगा। मन की शरणागति मेन पॉइंट। उसके बाद हैं ये सब।
यानि मन का पूर्ण सरैंडर, पूर्ण शरणागति यह नंबर एक।
उसके हेल्पर हैं शरीर से सेवा, धन से सेवा और फिर एक रीज़न ये भी है कि तन की सेवा सबको नहीं मिल सकती हमेशा। धन की सेवा सब नहीं कर सकते। बहुत से हैं उनकी रोटी-दाल का ही ठिकाना नहीं है अपना, वो कैसे करेंगे? लेकिन मन की शरणागति सब कर सकते हैं, वो प्रमुख है उसके बिना काम नहीं चलेगा। इतने सारे मंदिर बनवा दिये हैं सेठ जी ने, धन से। लेकिन इससे कुछ नहीं होता। पाप से पैसा इकट्ठा करके मंदिर खड़ा कर दिया और उसमें अपना नाम लिख दिया। वह सेठ जी का मंदिर है कि भगवान का मंदिर है। ऐसे लोगो को नरक के सिवाय क्या मिलेगा। तो धन की सेवा क्या हुई? सेवा में श्रद्धा, भगवदभावना का मिक्सचर होना चाहिये और जहाँ अपनी प्रतिष्ठा का सवाल है वह सेवा कहाँ है? वह तो इनकम टैक्स से बचने का उपाय है।
श्री महाराजजी द्वारा उत्तर:- नहीं। मेन बात तो शरणागति की है बिना मन की
शरणागति के तन और धन से काम नहीं चलेगा। मन की शरणागति मेन पॉइंट। उसके बाद हैं ये सब।
यानि मन का पूर्ण सरैंडर, पूर्ण शरणागति यह नंबर एक।
उसके हेल्पर हैं शरीर से सेवा, धन से सेवा और फिर एक रीज़न ये भी है कि तन की सेवा सबको नहीं मिल सकती हमेशा। धन की सेवा सब नहीं कर सकते। बहुत से हैं उनकी रोटी-दाल का ही ठिकाना नहीं है अपना, वो कैसे करेंगे? लेकिन मन की शरणागति सब कर सकते हैं, वो प्रमुख है उसके बिना काम नहीं चलेगा। इतने सारे मंदिर बनवा दिये हैं सेठ जी ने, धन से। लेकिन इससे कुछ नहीं होता। पाप से पैसा इकट्ठा करके मंदिर खड़ा कर दिया और उसमें अपना नाम लिख दिया। वह सेठ जी का मंदिर है कि भगवान का मंदिर है। ऐसे लोगो को नरक के सिवाय क्या मिलेगा। तो धन की सेवा क्या हुई? सेवा में श्रद्धा, भगवदभावना का मिक्सचर होना चाहिये और जहाँ अपनी प्रतिष्ठा का सवाल है वह सेवा कहाँ है? वह तो इनकम टैक्स से बचने का उपाय है।
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