Monday, February 4, 2013

विपरीत चिंतन होने लगे तो तुरंत लाइन काट दो, - "नहीं मैं ही गलत हूँ, वो सही है, उनसे गलत काम हो ही नहीं सकता।" जैसे खाना खाते समय यदि एक चीज भी गलत आई,थोड़ी सी प्रतिकूल चीज भी आई,मुख से बाहर निकाल दिया। ऐसे ही आत्मा के प्रतिकूल पदार्थ यानि प्रतिकूल चिंतन प्रारम्भ होते ही इलाज़ करो, अन्यथा द्रौपदी के चीर की भाँति बढ़ता ही जायेगा,फिर संभल नहीं पायेगा। भगवान कहते हैं ," समस्त शास्त्रों का समस्त ज्ञान समस्त जीव प्राप्त नहीं कर सकते हैं।" यदि वह केवल इतना याद रखे कि विरक्त होकर वास्तविक गुरु के शरणागत हों और प्रतिक्षण गुरु के अनुकूल ही चिंतन व संकल्प करें तो उनका काम बन जायेगा।
--------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।
विपरीत चिंतन होने लगे तो तुरंत लाइन काट दो, - "नहीं मैं ही गलत हूँ, वो सही है, उनसे गलत काम हो ही नहीं सकता।" जैसे खाना खाते समय यदि एक चीज भी गलत आई,थोड़ी सी प्रतिकूल चीज भी आई,मुख से बाहर निकाल दिया। ऐसे ही आत्मा के प्रतिकूल पदार्थ यानि प्रतिकूल चिंतन प्रारम्भ होते ही इलाज़ करो, अन्यथा द्रौपदी के चीर की भाँति बढ़ता ही जायेगा,फिर संभल नहीं पायेगा। भगवान कहते हैं ," समस्त शास्त्रों का समस्त ज्ञान समस्त जीव प्राप्त नहीं कर सकते हैं।" यदि वह केवल इतना याद रखे कि विरक्त होकर वास्तविक गुरु के शरणागत हों और प्रतिक्षण गुरु के अनुकूल ही चिंतन व संकल्प करें तो उनका काम बन जायेगा।
 --------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज।

 
 

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