श्याम की मंद मंद मुसकान |
बिसरत नाहिं सखी एकहुँ छिन, पीतांबर फहरान |
मटकनि - मुकुट लटनि की लटकनि, अटक्यो तन मन प्रान |
अति रस भरे नैन सों हेरत, टेरत मुरली - तान |
नित्य - विहार करत वृंदावन, मंजुल - कुंज लतान |लखि ‘कृपालु’ छुटि जात समाधिन, शिव सनकादिक ध्यान ||
भावार्थ - अरी सखी ! श्यामसुन्दर की मन्द - मन्द मुस्कान एवं पीताम्बर की फहरान एक क्षण को भी नहीं भूलती | उनके मुकुट के झूमने एवं घुँघराले बालों के लटकने पर मेरा तन, मन, प्राण अटका हुआ है | वे अत्यन्त रसीली आँखों से देखते हुए मुरली की तान छेड़ते हैं | वे वृन्दावन की सुन्दर लता कुंजों में नित्य विहार करते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि उन्हें देख कर शिव सनकादिक परमहंसों का समाधिस्थ ध्यान भी छूट जाता है |
( प्रेम रस मदिरा श्रीकृष्ण – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति.
बिसरत नाहिं सखी एकहुँ छिन, पीतांबर फहरान |
मटकनि - मुकुट लटनि की लटकनि, अटक्यो तन मन प्रान |
अति रस भरे नैन सों हेरत, टेरत मुरली - तान |
नित्य - विहार करत वृंदावन, मंजुल - कुंज लतान |लखि ‘कृपालु’ छुटि जात समाधिन, शिव सनकादिक ध्यान ||
भावार्थ - अरी सखी ! श्यामसुन्दर की मन्द - मन्द मुस्कान एवं पीताम्बर की फहरान एक क्षण को भी नहीं भूलती | उनके मुकुट के झूमने एवं घुँघराले बालों के लटकने पर मेरा तन, मन, प्राण अटका हुआ है | वे अत्यन्त रसीली आँखों से देखते हुए मुरली की तान छेड़ते हैं | वे वृन्दावन की सुन्दर लता कुंजों में नित्य विहार करते हैं | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि उन्हें देख कर शिव सनकादिक परमहंसों का समाधिस्थ ध्यान भी छूट जाता है |
( प्रेम रस मदिरा श्रीकृष्ण – माधुरी )
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज
सर्वाधिकार सुरक्षित - राधा गोविन्द समिति.
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