Monday, February 11, 2013

आ जाओ मेरे प्यारे बच्चों ......
चिंता न करो.......
मैं हूँ न?......
बस मुझसे प्यार ही तो करना है तुम्हे....येन केन प्रकारेण.......
बाकी सब मैं देख लूँगा........
...
जैसे संसार मैं प्यार करते हैं ठीक वैसे ही ...
लेकिन शर्त वही रहेगी...नित्य , निष्काम , अनन्य ...
मन केवल हरि-गुरु में ही रखो बस .. काम हो जायेगा...
अभ्यास तो करना ही पड़ेगा तुम सब को ..
अनंत जन्म का गलत अभ्यास जो कर रखा है तुम सब ने इसीलिए...

"बरबस पतितन देत प्रेम रस , अस रसिकन सरताज "

हरी गुरु चिंतन साधना , साध्य प्रेम निष्काम।
दिव्य दरस की प्यास नित , बाढ़े आठों याम।।

------तुम्हारा कृपालु।

 

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