ब्रह्म , जीव एवं माया 3 तत्व नित्य हैं ब्रह्म उपास्य है , जीव उपासक है ! उपासना मन को ही करनी है ! ब्रह्म का 2 स्वरूप है !
(1) निराकार
(2) साकार
निराकार ब्रह्म की भक्ति अत्यंत क्लिष्ट है ! कलियुग में असंभव सी है ! अतः साकार ब्रह्म श्री कृष्ण की ही भक्ति करनी है ! भक्ति में प्रमुख रूपध्यान है ! साथ में संकीर्तन भी करना है ! रूपध्यान स्वेच्छा से बनाना है ! इस प्रकार हरिगुरु का रूपध्यान करते हुये रोकर दिव्य प्रेम मांगना है ! मोक्ष पर्यन्त की कामना नहीं करना है !
कुसंग एवं नामापराध से बचना है !
तुम्हारा 'कृपालु '
(1) निराकार
(2) साकार
निराकार ब्रह्म की भक्ति अत्यंत क्लिष्ट है ! कलियुग में असंभव सी है ! अतः साकार ब्रह्म श्री कृष्ण की ही भक्ति करनी है ! भक्ति में प्रमुख रूपध्यान है ! साथ में संकीर्तन भी करना है ! रूपध्यान स्वेच्छा से बनाना है ! इस प्रकार हरिगुरु का रूपध्यान करते हुये रोकर दिव्य प्रेम मांगना है ! मोक्ष पर्यन्त की कामना नहीं करना है !
कुसंग एवं नामापराध से बचना है !
तुम्हारा 'कृपालु '
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