साधना
का पहला शत्रु है - अहंकार। जहाँ अहंकार आया , समझो दीनता खत्म। दीनता
ख़त्म तो समझो कि साधना चौपट हो गयी। आपको उपासना भगवान् की ही करनी है।
संसार में बस व्यवहार करना है। बाहर से आदर कीजिये , परन्तु अटैचमेंट न हो ,
लेकिन ईश्वरीय क्षेत्र में अनन्य प्रेम होना चाहिए।
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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