ठाकुर
जी का जैसा भी चाहें , रूपध्यान बना लो। बाल्यावस्था का ,किशोर रूप का ,
यूवावस्था का। ठाकुर जी उसी रूप मे मिल जायेंगे। लेकिन भगवान् को पहले
देखकर फिर रूपध्यान करने वाले नास्तिक बन जायेंगे , क्योंकि हमारी प्राकृत
आँखे 'प्राकृत राम ' को देखेंगी ,भगवान् राम को नहीं।
"चिदानंदमय देह तुम्हारी ,विगत विकार जान अधिकारी ''
अतः अधिकारी बनने के पूर्व देखने की बात न करो।
"चिदानंदमय देह तुम्हारी ,विगत विकार जान अधिकारी ''
अतः अधिकारी बनने के पूर्व देखने की बात न करो।
.......श्री महाराज जी।
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