कबीर जी कहते हैं:-
तीन लोक नौ खंड में गुरु से बड़ा न कोय।
करता करे न करि सके,गुरु करे सो होये।।
तीन लोक नौ खंड में गुरु से बड़ा न कोय।
करता करे न करि सके,गुरु करे सो होये।।
यदि परमात्मा करना भी चाहे, तो भी न कर पाये। लेकिन गुरु चाहे तो हो जाये।
इस वाक्य को पढ़कर आप सोचते होंगे कि ऐसा क्या? कबीर जी ने गुरु को
परमात्मा से ऊपर बता दिया ये तो अतिशयोक्ति करते मालूम पड़ते हैं। जी नहीं,
ध्यान से विचार करें। कबीर कह रहें हैं कि मार्ग के बिना तुम मंजिल पर
पहुँच नहीं सकते। मंज़िल तो एक छोर है, उस छोर तक पहुचने के लिये मार्ग नहीं
होगा तो पहुचोंगे कैसे? यानि मार्ग के बिना मंज़िल मिल नहीं सकती तो बताओ
मार्ग बड़ा या मंज़िल? क्योंकि मार्ग पर चल दिये तो निश्चित ही एक दिन मंज़िल
पर पहुँचोगे।
यानि परमात्मा मंज़िल है तो वो कुछ करना भी चाहे तो कर नहीं सकता काम। 'गुरु रूपी' मार्ग ही है, उसी के द्वारा मंज़िल मिलेगी। बस हमें ठीक से समझना होगा।
यानि परमात्मा मंज़िल है तो वो कुछ करना भी चाहे तो कर नहीं सकता काम। 'गुरु रूपी' मार्ग ही है, उसी के द्वारा मंज़िल मिलेगी। बस हमें ठीक से समझना होगा।
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