अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर...........
जब हम परमात्मा से प्रेम करने लगते हैं तो कोई भी सांसारिक वस्तु इस लायक नहीं प्रतीत होती कि उससे प्रेम किया जाए। जिस प्रकार चातक को यह विश्वास होता है कि स्वाति नक्षत्र में बरसे जल से ही उसकी पिपासा शान्त होगी, तब चातक पक्षी पावस में गिरने वाली ओस की पहली बूंदों का प्यासा हो जाता है तो उसे न तो तूफान का भय होता है और न ही बादलों की गर्जना का। इसी प्रकार साधक को भी ऎसी प्यास उत्पन्न हो जाये तो परमात्मा की प्राप्ति सुलभ हो जाती है, यदि एक बार ईश्वर सानिध्य का स्वाद चख लिया तो फिर उसे संसार की सभी वस्तुयें स्वत: ही बेजान और बेस्वाद लगने लगती हैं। तब सांसारिक सुख-दुख की धारणा मिट जाती है, तब वह परम-आनन्द को प्राप्त कर सभी प्रकार से मुक्त हो जाता हैं।
जय श्री राधे।
जब हम परमात्मा से प्रेम करने लगते हैं तो कोई भी सांसारिक वस्तु इस लायक नहीं प्रतीत होती कि उससे प्रेम किया जाए। जिस प्रकार चातक को यह विश्वास होता है कि स्वाति नक्षत्र में बरसे जल से ही उसकी पिपासा शान्त होगी, तब चातक पक्षी पावस में गिरने वाली ओस की पहली बूंदों का प्यासा हो जाता है तो उसे न तो तूफान का भय होता है और न ही बादलों की गर्जना का। इसी प्रकार साधक को भी ऎसी प्यास उत्पन्न हो जाये तो परमात्मा की प्राप्ति सुलभ हो जाती है, यदि एक बार ईश्वर सानिध्य का स्वाद चख लिया तो फिर उसे संसार की सभी वस्तुयें स्वत: ही बेजान और बेस्वाद लगने लगती हैं। तब सांसारिक सुख-दुख की धारणा मिट जाती है, तब वह परम-आनन्द को प्राप्त कर सभी प्रकार से मुक्त हो जाता हैं।
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