Sunday, June 22, 2014

मन के बहकावे में न आया करो। मन ने बड़े - बड़े योगियों को बर्बाद कर दिया। अगर मन से हार मान लिया तो वह आदमी तुरन्त पागल हो सकता है, आत्महत्या भी कर सकता है।
***जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज***

मन जितने समय श्यामसुंदर में लग गया उतने समय संसार से अलग हो गया। जितने क्षण कोई जीव संसार के चिंतन से बच गया, उतने समय भगवान और गुरु की उसपर विशेष कृपा समझो। किन्तु भला जीव इस बात को कैसे समझ सकेगा।
"तनुरंग छूटे धोये,गोविंद राधे। श्याम रंग छूटे ना,मन को बता दे"।।
-----श्री कृपालु जी महाप्रभु।

It is evident that to use God’s grace as an excuse for spiritual inaction, is a road leading to total ruin. The truth is that God does not impart His grace whimsically. God’s grace is based upon some condition; that is complete surrender. Whosoever fulfils this condition attains His grace and becomes eternally blissful.
.......SHRI MAHARAJ JI.

कबीर जी कहते हैं:-
तीन लोक नौ खंड में गुरु से बड़ा न कोय।
करता करे न करि सके,गुरु करे सो होये।।

यदि परमात्मा करना भी चाहे, तो भी न कर पाये। लेकिन गुरु चाहे तो हो जाये। इस वाक्य को पढ़कर आप सोचते होंगे कि ऐसा क्या? कबीर जी ने गुरु को परमात्मा से ऊपर बता दिया ये तो अतिशयोक्ति करते मालूम पड़ते हैं। जी नहीं, ध्यान से विचार करें। कबीर कह रहें हैं कि मार्ग के बिना तुम मंजिल पर पहुँच नहीं सकते। मंज़िल तो एक छोर है, उस छोर तक पहुचने के लिये मार्ग नहीं होगा तो पहुचोंगे कैसे? यानि मार्ग के बिना मंज़िल मिल नहीं सकती तो बताओ मार्ग बड़ा या मंज़िल? क्योंकि मार्ग पर चल दिये तो निश्चित ही एक दिन मंज़िल पर पहुँचोगे।
यानि परमात्मा मंज़िल है तो वो कुछ करना भी चाहे तो कर नहीं सकता काम। 'गुरु रूपी' मार्ग ही है, उसी के द्वारा मंज़िल मिलेगी। बस हमें ठीक से समझना होगा।

सच्चा साधक ------
1- द्वेष करने वाले व्यक्ति के प्रति भी द्वेष न करें ! उदासीन रहें !
2- आज कोई नास्तिक भी है , तो कल उच्च साधक बन सकता है ! अतः साधक यह न सोचे कि इसका पतन सदा के लिए हो चुका ! सूरदास आदि संत उदाहरण हैं !
3 - गुरु की सेवा करने वाला तो साधक ही है , उसके प्रिय होने के कारण उससे द्वेष करना पाप है !
4 - सचमुच भी कोई अपराधी हो तो भी मन से भी उसके भूतपूर्व अपराधों को न सोचें , न बोलें !
5 - संसार में भगवत्प्राप्ति के पूर्व सभी अपराधी हैं ! बड़े - बड़े साधकों का भी पतन एवं बड़े - बड़े पापियों का भी उत्थान एक क्षण में हो सकता है !
6 - सब में श्री कृष्ण का निवास है , अतः उनको ही महसूस करें !
**********जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ***********

Saturday, June 21, 2014

तुम लोग अपने मन को अपने शरण्य में रखो। परस्पर प्यार से रहो एवं स्वयं में दोष देखो, अपनी-अपनी सेवा करो। यदि मुझे सुख देना चाहते हो तो, सदा अपने मन को राग द्वेष रहित रखो एवं शरण्य से प्यार बढ़ाओ। मैं सदा तुम लोगो को याद करता हूँ, तथा एक-एक क्षण का आइडिया नोट करता हूँ। वेद से लेकर रामायण तक अनंत कोटि-कल्प तक अध्ययन करके देख लो यही पाओगे कि गुरु और भगवान एक ही है अत: गुरु सेवा ही सर्वश्रेष्ठ लक्ष्य है।
****जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाप्रभु ****

Preparatory devotion is repeated contemplation upon God and the Guru lovingly. Perfect devotion is constant absorption of the mind in them.
......SHRI MAHARAJ JI.

ठाकुर जी का जैसा भी चाहें , रूपध्यान बना लो। बाल्यावस्था का ,किशोर रूप का , यूवावस्था का। ठाकुर जी उसी रूप मे मिल जायेंगे। लेकिन भगवान् को पहले देखकर फिर रूपध्यान करने वाले नास्तिक बन जायेंगे , क्योंकि हमारी प्राकृत आँखे 'प्राकृत राम ' को देखेंगी ,भगवान् राम को नहीं।
"चिदानंदमय देह तुम्हारी ,विगत विकार जान अधिकारी ''
अतः अधिकारी बनने के पूर्व देखने की बात न करो।
.......श्री महाराज जी।

संत भोजपत्र के सामान निरन्तर दूसरों के लिये ही कष्ट सहते हैं। जीव कल्याण हित अपना सर्वस्व लुटा देते हैं।
-----श्री महाराज जी।

बिनु रोये किन पाइयां प्रेम पियारो मीत।

Friday, June 20, 2014

संत भोजपत्र के सामान निरन्तर दूसरों के लिये ही कष्ट सहते हैं। जीव कल्याण हित अपना सर्वस्व लुटा देते हैं।
-----श्री महाराज जी।

मेरे केवल इसी वचन पर विशवास कर लो.......
भगवान् की इतनी बड़ी कृपा है कि वे कहते हैं कि मैं सर्वव्यापक हूँ , तू इसको मानता नहीं है, मैं गोलोक में रहता हूँ, वहां तुम आ नहीं सकते, मैं तुम्हारे अंतःकरण में तुम्हारे साथ बैठा हूँ इसका तुम्हे ज्ञान नहीं है , इसलिए लो, ' मैं ' अपने नाम में अपने आप को बैठा देता हूँ। " अपने नाम में 'मैं' मूर्तिमान बैठा हुआ हूँ।"
जिस दिन यह बात तुम्हारे मन में बैठ जाएगी , तुम्हें यह दृढ विश्वास हो जाएगा कि भगवान् और भगवान् का नाम एक है। दोनों में एक जैसी शक्तियाँ हैं, एक से गुण हैं, उस दिन फिर एक नाम भी जब लोगे, एक बार भी 'राधे' कहोगे तो कहा नहीं जायेगा, वाणी रुक जाएगी, मन डूब जायेगा, कंठ गद्गद हो जायेगा, फिर भगवत्प्राप्ति में क्या देर होगी। उसी क्षण गुरुकृपा एवं भगवत्प्राप्ति हो जाएगी। मेरे केवल इसी वचन पर विश्वास कर लो, स्वर्ण अक्षरों में लिख लो।

-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु ।

84 लाख शरीरों में मानव देह ही ऐसा है जिसमें साधना द्वारा मानव , महामानव बन सकता है।
किन्तु साथ ही यह मानव देह क्षणभंगुर है। अतएव तन,मन,धन,का उपयोग भगवद्विषय में तुरन्त करना चाहिए।
उतिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ( वेद )
उठो , जागो , महापुरुष की शरण में जाओ एवं अपना लक्ष्य प्राप्त करो।

.........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

एक बात बड़ी इंपोर्टेंट { IMPORTANT }.......
हरि, गुरु को अपने साथ ,सर्वत्र ,सर्वदा महसूस करो। इसका अभ्यास करो। दस दिन ,बीस दिन, महीने, छ: महीने में यह अभ्यास पक्का हो जायेगा कि हम अकेले नहीं हैं। हम जहां अपने को अकेला मानते हैं वहीं पाप कर बैठते हैं - प्राइवेट।
अरे, वेद कहता है, अगर तुम गुरु को न भी मानो तो भगवान को तो मानो कि अंत:करण में वो नित्य हमारे साथ है, हमारे आइडिया नोट कर रहा है। तो हरि-गुरु को अपने साथ अपना रक्षक मानो। यह फीलिंग हो - हम अकेले नहीं हैं,सदा वे हमारे साथ है।गलत काम न करें ,गलत चिंतन न करें । सावधानी आयेगी तो अपराध से बचेंगे।

.........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।


We are looking for happiness in this material world. Just as butter can only be extracted from milk and it is naive to try to extract butter from limestone water. Similarly, God is Happiness and you can derive True Happiness only from God. Out of ignorance, you are attempting to find that happiness in this material world. We will be able to be completely satisfied and happy until we attain God-realization.
............SHRI MAHARAJ JI.

Thursday, June 19, 2014

स्मरण एक मिनिट तो क्या एक क्षण से शुरू होता है। इसे बढ़ाना ही 'साधना' है। इस एक क्षण के 'स्मरण' को 'मरण' तक बढ़ाते ही रहना है।
..........श्री महाराज जी।

मानव देह की क्षणभंगुरता पर विचार करते हुए तुरंत वास्तविक महापुरुष द्वारा निर्दिष्ट साधना प्रारम्भ करो, संसारी कमाई पर नहीं, ईश्वरीय कमाई पर ध्यान दो। वो ही साथ जायेगी।
.......श्री महाराज जी।

गुरु आवश्यक है , गुरु किसे कहते हैं ?
जिसमें श्रीकृष्ण प्रेम हो , केवल लैक्चर दे , उससे काम नहीं चलेगा। भगवान् की प्राप्ति में केवल प्रेम देखा जायेगा।
रामही केवल प्रेम पियारा।
आप लोग जब पैदा हुये तो बोल नहीं सकते थे , माँ को पहचान भी नहीं सकते थे। भूख लगी - रो दिये। दर्द हुआ - रो दिये। बस ! बस वहीँ फिर पहुँचना होगा आपको एक दिन। इस जन्म में पहुँचो चाहें हजारों जन्मों में दुःख भोगने के पश्चात्। ये कृपालु का वाक्य आपको सदा याद रखना है - फिर भोले बालक बनना है , { भोला बालक }
गुरु के आदेश में जरा भी बुद्धि न लगाओ ; जैसे वाल्मीकि मरा - मरा कहता रहा , उसने न तो ये पूछा कि मरा - मरा कहने से क्या होगा ? और न ये पूछा आप कब लौटकर आयेंगे ? जो आज्ञा है उसका पालन करना है।

............जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

जो मेरी ही शरण में आ जाता है उसके अनन्त जन्म के पाप को नाश कर देता हूँ। तो फिर पाप पाप की बात क्यों खोपड़ी में लगी है तेरे ? मैं पूर्ण शरणागत के थोड़े से पापों को नहीं , 'सर्वपापेभ्यो ' समस्त पापों को नष्ट कर देता हूँ और आगे पाप न करेगा ये ठेका ले लेता हूँ। गारण्टी। लेकिन प्रपन्न होना होगा। प्रपन्न माने पूर्ण शरणागति यानी मन बुद्धि भी शरणागत हो। अपनी बुद्धि न लगा....... मन भी मुझे दे दे।
.........जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

Shri Radha, the bliss-imparting power (hladini shakti) of Shri Krishna, teaches the lesson of divine love. No one loves or pleases Krishna like She does. Supremely selfless in Her devotion to Him, She gives no thought to Her own happiness, but only to His. To serve Him is the aim of Her existence and to please Him, Her joy.
.......SHRI MAHARAJ JI.

Wednesday, June 18, 2014

दाद को खुजालते समय तो आराम मालूम पड़ता है पर बाद में, उस जगह असह्य जलन होने लगती है. संसार के भोग भी ऐसे ही है - शुरू शुरू में तो वे बड़े ही सुखप्रद मालूम होते है परन्तु बाद में उनका परिणाम अत्यन्त भयंकर एवं दुखमय होता है।
While itching ringworm, we feel great comfort that time but afterwards on that place we will have intolerable irritation. In the same way enjoyment of material matters of this world are like this only- Initially they are very comfy but afterwards their results are very dangerous and Sorrowful.
--------JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.

प्रारब्ध उसी को कहते हैं जब दुःख की कल्पना की जाय किन्तु सुख प्राप्त हो अथवा सुख की कल्पना की जाय और दुःख प्राप्त हो।
.......श्री महाराज जी।

जिज्ञासु जन !
मानव देह दुर्लभ है किन्तु नश्वर है किसी भी क्षण छिन सकता है । अतएव उधार न करो । तत्काल मन से हरि गुरु का स्मरण प्रारंभ कर दो ।
शरीर से संसारी कार्य करो एवं मन का अनुराग हरि गुरु में हो ।
मन हरि में तन जगत में , कर्म योग ये हि जान तन हरि में मन जगत में , यह महान अज्ञान।

**** जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाप्रभु****

ALL THE NAMES,VIRTUES,LEELAS,ABODES AND THE RASIK SAINTS OF RADHA KRISHN ARE TOTALLY SYNONYMOUS.
------SHRI MAHARAJJI.

सारा संसार मायाजनित अज्ञान के द्वारा अन्धा हो रहा है परन्तु अपने को कोई भी अज्ञानी नहीं समझता सभी ज्ञानी समझते हैं।
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

Tuesday, June 17, 2014

एक वाक्य रट लीजिये रोम-रोम से कि श्यामसुंदर के सुख के लिये ही श्यामसुंदर का दर्शन चाहेंगे,सेवा चाहेंगे,सब चीज उनकी इच्छा के अनुसार,उनकी इच्छा के विपरीत कदापि नहीं।
........श्री महाराज जी।

एक साधक का प्रश्न --- किसी साधक का ये सोचना कि श्री महाराज जी दुःखी हैं , क्या इस प्रकार का चिंतन गलत है ?
श्री महाराज जी द्वारा उत्तर ---- गलत तो नहीं है। सब कुछ ठीक है। किन्तु क्यों दुःखी है , उसका कारण सोचे, भविष्य में उसको दूर करने का प्रयत्न करे।
यदि वह ऐसा नहीं करता है तो वह सोचेगा --- हम तो महाराज जी को सुखी कर ही नहीं सकते और यह नामापराध कर डालेगा।

जीव न मरता है न पैदा होता है।
ये जीव न मरता है न पैदा होता है। तो रमेश न तो बना है और न मरा है। वो आया था ओ चला गया ऐसा बोलो। जैसे हम संसार से बोलते हैं न अरे वो रमेश बम्बई से आज आया था एक घण्टे बाद चला गया। तो, इसका मतलब मरा तो नहीं। नहीं नहीं। आया था बम्बई से एक घण्टे बाद चला गया। ऐसे ही ये जीव माँ के पेट में शरीर में अाया था और आज इस शरीर को छोड़कर चला गया। तो जीव भी नित्य है , भगवान भी नित्य हा और माया जड़ होते हुये भी नित्य है।
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।

हम आनंद रुपी भगवान् के अंश हैं।
तो ये सब बेचारे भिखमंगे हैं। इनके पास प्रेम नहीं है ये स्वार्थ के लिये प्रेम करते हैं। और जहाँ स्वार्थ है , वहॉँ का। प्रेम प्रेम है ही नहीं। क्योंकि स्वार्थ काम सिद्ध हुआ तो प्रेम घट गया। स्वार्थ बिलकुल नहीं सिद्ध हो रहा है प्रेम खतम हो जाता है। उसकी आधारशिला गलत है इसलिये वो प्रेम टिकाउ कैसे रहेगा।
चाहे माँ का प्रेम हो , चाहे बाप का , चाहे बीबी का , चाहे किसी वस्तु का हो। तो सबसे प्रिय वस्तु आत्मा है। आत्मा से वैराग्य किसी को नहीं होगा। देखने का , सुनने का , सूंघने का रस लेने का सामान क्यों चाहते हो। केवल एक कारण है , आत्मा को सुख मिलता है। तो आत्मा का सुख क्यों चाहते हो ?
उसका कोई कारण नहीं जानते हम कि हम आत्मा का सुख क्यों चाहते हैं।
दूसरे का सुख क्यों नहीं चाहते अपनी आत्मा का सुख क्यों चाहते है ? इसलिये चाहते हैं कि हम आनन्द रुपी भगवान् के अंश हैं।

-------जगद्गुरुत्तम श्री कृपालु जी महाप्रभु।

Service (seva) (physical or monetary) (tan se ya dhan se) is a token of your love and dedication at your master's feet which he accepts out of his kindness.If a rasik saint accepts your services,it is only his grace upon you.
------JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.

Monday, June 16, 2014

अनंत जन्मों से हम गंदगी खा रहे हैं,विष पीने का इतना अधिक अभ्यास हो गया है कि अमृत पीना अच्छा नहीं लगता।
........श्री 'कृपालु' गुरुवर।

जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज के अनुसार समस्त वेदों शास्त्रों का सार 'राधा नाम' ही है। श्री राधाकृष्ण नाम, रूप, लीला, गुण, धाम का निरंतर गुणगान ही उनकी प्रमुख शिक्षा है जो वे सभी साधकों को बताते हैं।

सभी जीव पुत्र हैं गोविन्द राधे।
पुत्र धर्म नित सेवा पिता की बता दे।।
......श्री महाराजजी।

श्री महाराज जी हमारे पिता ही नहीं वरन परमपिता हैं।
इसलिए हम सभी साधकों की तरफ से.………'HAPPY FATHER'S DAY MAHARAJ JI'….....
और हम सब पर अपना दिव्य प्रेम बरसाइये और हमें अनन्य भक्ति और निष्काम सेवा का नित्य निरंतर अवसर दीजियेगा………
राधे - राधे।

प्रथम नमन गुरुवर पुनि गिरिधर, जोई श्री गुरुवर सोई श्री गिरिधर।
हरि गुरु कृपा सदा सब ही पर, अंत:करण पात्र पावन कर।
करहु 'कृपालु' कृपा मोहूँ पर, तन मन धन अर्पन चरनन पर।।

Sunday, June 15, 2014

Going to temple or Satsang and simultaneously not making efforts to remove the material attachment is sheer hypocrisy. By doing this, we are not deceiving Hari and Guru (as they know everything), but we actually cheat ourselves and plunge into the ocean of karmic bondage for long time... So let's be sincere in Sadhna Bhakti.

Both from the point of view of experiencing the highest and sweetest nectar of divine love, and because of the ease provided in the practice of devotion, meditating upon Lord Krishna is most appropriate. He is infinitely beautiful and charming being the ocean of nectarine bliss, the stealer of the hearts of surrendered souls, the Crest Jewel of the Rasiks and the Darling of Braj.
............JAGADGURU SHRI KRIPALU JI MAHARAJ.

भगवान् का कोई भी कार्य या वस्तु अमंगलकारी नहीं हैं फिर माया हमारा अमंगल कैसे करेगी ?
माया का झापड़ खाकर ही हमें संसार से वैराग्य होता है , हम ईश्वर की ओर बढ़ते हैं।

………श्री कृपालु जी महाप्रभु।

स्मरण एक मिनिट तो क्या एक क्षण से शुरू होता है। इसे बढ़ाना ही 'साधना' है। इस एक क्षण के 'स्मरण' को 'मरण' तक बढ़ाते ही रहना है।
..........श्री महाराज जी।

जिन्होंने अपना समस्त जीवन जीव कल्याणार्थ समर्पित कर दिया , जो हर पल जीवों को प्रेम रस परिप्लुत करने के लिए लालायित रहते हैं ,
ऐसे प्रेमानन्द में निमग्न प्रेममूर्ति श्री कृपालु जी महाप्रभु को कोटि कोटि प्रणाम !

Saturday, June 14, 2014

हम साधकों को सदा यही समझना चाहिए कि हमसे जो अच्छा काम हो रहा है, वह गुरु एवं भगवान की कृपा से ही हो रहा है क्योंकि हम तो अनादिकाल से मायाबद्ध घोर संसारी, घोर निकृष्ट, गंदे आइडियास(ideas) वाले बिलकुल गंदगी से भरे पड़े हैं। हमसे कोई अच्छा काम हो जाये, भगवान के लिए एक आँसू निकल जाय, महापुरुष के लिए, एक नाम निकल जाये मुख से, अच्छी भावना पैदा हो जाये उसके प्रति हमारी यह सब उनकी ही कृपा से हुआ ऐसा ही मानना चाहिये। अगर वे सिद्धान्त न बताते , हमको अपना प्यार न देते तो हमारी प्रवर्ति ही क्यों होती, कभी यह न सोचो की हमारा कमाल है, अन्यथा अहंकार पैदा होगा , अहंकार आया की दीनता गयी, दीनता गयी तो भक्ति का महल ढह गया। सारे दोष भर जाएंगे एक सेकंड में इसलिए कोई भी भगवत संबंधी कार्य हो जाये तो उसको यही समझना चाहिये कि गुरु कृपा है, उसी से हो रहा है ताकि अहंकार न होने पाये। अगर गुरु हमको न मिला होता, उसने हमको न समझाया होता ,उसने अपना प्यार दुलार न दिया होता, आत्मीयता न दी होती तो हम ईश्वर कि और प्रव्रत्त ही न होतें। अत: उन्ही की कृपा से सब अच्छे कार्य हो रहें है ऐसा सदा मान के चलो।
......जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाप्रभु।

इष्टदेव और गुरु में अभेद मानो। उनकी सेवा ही को अपना सर्वस्व मानो, उनकी इच्छा में ही इच्छा रखो।
-------श्री महाराज जी।

साधना का पहला शत्रु है - अहंकार। जहाँ अहंकार आया , समझो दीनता खत्म। दीनता ख़त्म तो समझो कि साधना चौपट हो गयी। आपको उपासना भगवान् की ही करनी है। संसार में बस व्यवहार करना है। बाहर से आदर कीजिये , परन्तु अटैचमेंट न हो , लेकिन ईश्वरीय क्षेत्र में अनन्य प्रेम होना चाहिए।
-------जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।

मान ले उनको तू सिर्फ़ अपना.......सीख़ ले याद में बस तड़पना.........वे लगा लेंगे सीने से तुझको.......वे लगा लेंगे सीने से तुझको.........वे 'कृपालु' हैं तंगदिल नहीं हैं...........!!

जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज की प्रचारिका सुश्री श्रीधरी दीदी द्वारा विलक्षण दार्शनिक प्रवचन एवं रसमय संकीर्तन का आयोजन। सभी भक्तगण सादर आमंत्रित हैं।
दिनाँक:-15 जून से 25 जून,2014।
समय:- साँय 6 से 7.30 बजे तक।
स्थान: सत्संग भवन,गणेश मंदिर,झोटवाड़ा,जयपुर।

Friday, June 13, 2014

'आज' नहीं 'कल' कर लेंगे,बस वो कर ले,बस ये कर लें,बस फिर भजन करेंगे.......इस प्रकार अनंत जन्म गँवा दिये लेकिन वह 'आज' और वो 'कल' कभी ना आ सका।
.........श्री महाराजजी।
Your tatvagyan (concepts of the Divine Path) should be so strong so that even if a person presents his head(is ready to give away his life) to you then also you should have a firm faith on your spiritual masters words that no one in this world can love another person and its only Guru and Bhagwan who love you unconditionally .Then only you can move on this path which leads you to the attainment of your ultimate goal i.e. Divine Love without any distractions.
-------SHRI MAHARAJ JI.

मानव देह की दुर्लभता के साथ साथ क्षणभंगुरता पर विचार करते हुए तुरंत वास्तविक महापुरुष द्वारा निर्दिष्ट साधना प्रारम्भ करो, संसारी कमाई पर नहीं, ईश्वरीय कमाई पर ध्यान दो। वो ही साथ जायेगी।
.......जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु।

अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर...........
जब हम परमात्मा से प्रेम करने लगते हैं तो कोई भी सांसारिक वस्तु इस लायक नहीं प्रतीत होती कि उससे प्रेम किया जाए। जिस प्रकार चातक को यह विश्वास होता है कि स्वाति नक्षत्र में बरसे जल से ही उसकी पिपासा शान्त होगी, तब चातक पक्षी पावस में गिरने वाली ओस की पहली बूंदों का प्यासा हो जाता है तो उसे न तो तूफान का भय होता है और न ही बादलों की गर्जना का। इसी प्रकार साधक को भी ऎसी प्यास उत्पन्न हो जाये तो परमात्मा की प्राप्ति सुलभ हो जाती है, यदि एक बार ईश्वर सानिध्य का स्वाद चख लिया तो फिर उसे संसार की सभी वस्तुयें स्वत: ही बेजान और बेस्वाद लगने लगती हैं। तब सांसारिक सुख-दुख की धारणा मिट जाती है, तब वह परम-आनन्द को प्राप्त कर सभी प्रकार से मुक्त हो जाता हैं।
जय श्री राधे।

Thursday, June 12, 2014

भगवद क्षेत्र में उधार मत करो। तुरंत साधना में लग जाओ। मृत्यु किसी भी क्षण आ सकती है। और जब आज कल पर ही टालते रहोगे तो उम्र चाहे जितनी भी हो पर कभी भजन प्रारंभ नहीं कर सकोगे। अत: भगवदप्राप्ति का लक्ष्य पूरा नहीं होगा।
-------जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाप्रभु।