जिसका मन संसार के किसी पदार्थ में न हो , ऐसा व्यक्ति ही परम शान्ति का अधिकारी बन सकता है।
पुनः और भी स्पष्ट कहा है कि ---- तू जो कुछ करता है , जो कुछ खाता है , जो कुछ यज्ञादि करता है , जो कुछ दानादि करता है , सब मेरे निमित ही कर , अर्थात मन का लगाव मुझमें हो तो तेरा कर्म अकर्म हो जायेगा और तू कृतार्थ हो जायेगा।
…………श्री महाराज जी।
पुनः और भी स्पष्ट कहा है कि ---- तू जो कुछ करता है , जो कुछ खाता है , जो कुछ यज्ञादि करता है , जो कुछ दानादि करता है , सब मेरे निमित ही कर , अर्थात मन का लगाव मुझमें हो तो तेरा कर्म अकर्म हो जायेगा और तू कृतार्थ हो जायेगा।
…………श्री महाराज जी।
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