साधना
में हर एक को क्रोध आता है। जब साधक यह सोचता है कि हमने तुमको महापुरुष
माना और तुम कृपा कर सकते हो , फिर हम पर कृपा क्यों नहीं करते। यह
स्वाभाविक प्रशन है। लेकिन सिद्धान्त यह है कि जब अधिकारी बनोगे तभी कृपा
होगी। जो क्रोध दोष देखता है वह निंदनीय है। लेकिन जो पर्सनेलिटी में दोष
नहीं देखता और क्रोध करता है , वह मनः कल्पित है। प्रेमा भक्ति से भाव वेश
भक्ति तक क्रोध होता है वह क्रोध नहीं माना जा सकता।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
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